संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – ४)  


संस्कृतं देवभाषास्ति वेदभाषास्ति संस्कृतम् ।
प्राचीनज्ञानभाषा च संस्कृतं भद्रमण्डनम् ।।

अर्थ : संस्कृत देवभाषा है,  संस्कृत वेद भाषा है । यह प्राचीन ज्ञानकी भाषा है, यह भद्रजनोंकी शोभा है ।
  आपको समझमें आया कि हमारे समाजमें अभद्रता कैसे आ गई ? जी हां, जबसे हमने भद्रोंकी भाषा कही जानेवाली देववाणीका परित्याग कर दिया है, तबसे हम असभ्य और अभद्रों जैसा वर्तन करने लगे हैं । भद्रता किसे कहते हैं और हम कितने असभ्य हो चुके हैं ?, इसका आपको उदाहरण देनेकी आवश्यकता नहीं है ।  प्रतिदिनके समाचार पढें या सुनें, आपको समझमें आ जाएगा कि हम कैसे एक अभद्र समाजमें रह रहे हैं ।  एक सुसंस्कृत समाजके असभ्य बननेका क्रम यह बताता है कि भाषाका हमपर कितना प्रभाव पडता है !  आजके धनाढ्य वर्ग, जिसे हम सभ्य कहते हैं, उनका एक वाक्य भी बिना अपशब्दके पूर्ण नहीं होता ! क्या ऐसे लोग सभ्य और भद्र कहलानेके अधिकारी हैं ? ऐसे असभ्य लोग इस सभ्य समाजमें कैसे उत्पन्न हुए ?, इसपर चिन्तन करें, तो ज्ञात होगा कि हमने सुसंस्कृत होनेके माध्यम अर्थात संस्कृत भाषाका ही परित्याग कर दिया है ।  हिन्दू धर्मद्रोही कांग्रेसकी सोची समझी रणनीति अंतर्गत इस भाषाको जनमानससे लुप्त कर दिया गया, उन्हें ज्ञात था कि सभ्योंपर शासन वे कर नहीं सकते; इसलिए इन्हें असभ्य बनाओ, यह अंग्रेजोंसे उन्हें विरासतमें मिली है और इसमें वे निश्चित ही सफल हुए हैं, यह आप देख ही रहे हैं ! इन जैसे मानवताके शत्रुओंके इस कुचक्रसे बाहर आने हेतु सीखें संस्कृत !

कैसे सीखें संस्कृत ?
विद्यालयीन पाठ्यक्रमोंमें बारहवीं तककी पुस्तकोंका प्रथम अभ्यास करें, तत्पश्चात ‘लघुसिद्धान्त कौमुदी’ जैसे ग्रन्थोंका अभ्यास आरम्भ करें ! किसी भी भाषाका प्राण उसका व्याकरण होता है और संस्कृतका व्याकरण एक दर्शन है, आप जितना सूक्ष्मतासे इसका अभ्यास करेंगे, यह उतना ही आनन्द प्रदान करेगा ! मात्र प्रतिदिन एक घण्टे इसके अभ्यास हेतु निकालनेकी आवश्यकता है । साथ ही ‘यूट्यूब’की भी सहायता ले सकते हैं; किन्तु सदैव संस्कृत सीखने हेतु प्रथम व्याकरणसे उसका अभ्यास आरम्भ करें !



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