सन्त वाणी


जो विद्या पुस्तकमें रखी हो, मस्तिष्कमें संचित हो और जो धन दूसरेके हाथमें चला गया हो, आवश्यकता पडनेपर न वह विद्या ही काम आ सकती है और न वह धन ही । – चाणक्य 


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