माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर॥ – सन्त कबीर
अर्थ : यदि अपने स्वभावदोष और अहंके लक्षण दूर करने हेतु सतर्कतासे प्रयास न किया जाये तो सम्पूर्ण जीवन माला फेरने पर भी कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता ! अतः साधकको दोषोंका अभ्यास कर उसे दूर करनेका प्रयास करना चाहिए, अन्यथा जैसे छिद्र युक्त घड़ेमें कभी भी पानी एकत्रित नहीं रह सकता, उसी प्रकार साधक द्वारा दोषोके कारण होनेवाले चूक उसके माला द्वारा किया गए जपको व्यर्थ कर देता है ! ध्यान रहे मन ही हमारे बंधन और मोक्षका कारण है; अतः आध्यात्मिक प्रगति हेतु सतही स्तर पर माला जपनेके स्थान पर मनके दोष और अहंके लक्षण दूर करना चाहिए | वैसे भी माला लेकर जप करनेसे मनकी एकाग्रता साध्य नहीं हो सकती, वह तो मात्र साधकमें नामजपका संस्कार डालने हेतु उपयोगी है ! वैखरी वाणी अर्थात जिस नामजपसे ध्वनि आती हो , होंठ हिलते हों, उससे आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती, मात्र अंश मात्र मन अनुशासित होता है, आध्यात्मिक प्रगति हेतु मानसिक जपका होना अर्थात मध्यमा वाणीका जप आवश्यक है ! अतः साधकको अध्यात्ममें सदैव अगले-अगले चरणमें जाने हेतु प्रयासरत रहना चाहिए !
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