शाकाहार एवं मांसाहार, खण्डन एवं मण्डन


१. “’एथलीट्स’को बलिष्ठ होने हेतु मांस (मीट) खानेकी आवश्यकता होती है ।”

अनेक ‘ओलम्पिक’ पदक विजेता शाकाहारी हैं । मांसाहारी देश, जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, सोमालिया, सऊदी अरब, ईरान, ईराक आदि ‘ओलम्पिक’ सूचीमें कहां हैं ? अमेरिका तथा चीन आदि देशोंके खिलाडियोंके स्वर्ण पदक (गोल्ड मैडल) जीतनेके कारण भिन्न हैं ।

२. “मात्र मेरे मांसाहार छोडनेसे कुछ भी परिवर्तित नहीं होगा ।”

अवश्य परिवर्तित होगा, १ परिवार न्यूनतम ३० पशुओंको प्रतिवर्ष बचा सकता है ।

३. “हमें ‘प्रोटीन’की आपूर्ति हेतु मांस खाना चाहिए ।”

नहीं, ऐसा कदापि नहीं है । ‘प्रोटीन’, वनस्पतीय भोजनमें भी प्रचुरतासे पाए जाते हैं । दाल एवं अनाज आपके लिए पर्याप्त हैं, ‘प्रोटीन’ प्राप्त करने हेतु मांसाहारकी आवश्यकता नहीं है, यह एक मिथक है । यदि मांस एवं ‘प्रोटीन’से ही स्वास्थ्य होता, तो अमेरिकामें ६२% व्यक्ति मोटे नहीं होते । पाकिस्तानमें संसारकी सबसे अधिक आनुवंशिक (जेनेटिक) रोग नहीं होते ।

४. “’फार्म’में पशुओंके साथ मानवीय व्यवहार होता है ।”

पूर्णत: असत्य ! खाने हेतु पाले जानेवाले पशुओंमें ९५% से अधिक ‘फैक्ट्री फार्म’में घोर कष्टमय जीवन जीते हैं । अस्वच्छ, तङ्ग पञ्जरमें (पिंजरेमें), खचाखच ठूंसे हुए, बिना पीडा निवारकके (दर्द निवारकके) अङ्ग-भङ्गकी पीडा सहन करनेको विवश, निर्दयतापूर्वक मारे जाते हैं । विश्वास नहीं होता ? तो ‘यूट्यूब’पर (youtube पर) टर्की पक्षीके पङ्ख हटानेकी प्रक्रिया देखिए । इतना ही नहीं, ‘फार्म-हाउस’पर पशुओं एवं पक्षियोंको बडी मात्रामें ‘एन्टीबॉयोटिक’ व कृमिनाशक औषधियां दी जाती हैं ।

मानव शरीरमें जीवाणु, इन औषधियोंके प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर लेते हैं । ये औषधियां मांसके साथ अल्प मात्रामें हमारे शरीरमें पहुंचती हैं । इससे हमारे रोग अधिक जटिल होते जा रहे हैं ।

५. “मुझे शाकाहारी आहार पसन्द नहीं है ।”

तो क्या आपको ‘दही भल्ले’ एवं ‘टिक्की’ प्रिय नहीं है ? डोसा-चटनी व ढोकलाके विषयमें क्या विचार है ? मिठाइयां भी सभी रुचिसे खाते हैं । आप प्रायः शाकाहारी भोजन खाते हैं, मात्र कहते नहीं हैं ।

६. “शाकाहारी होना अस्वास्थ्यकर है ।”

यदि मांसाहारी स्वस्थ होते, तो पाकिस्तान, बांग्लादेशमें १००% व्यक्ति स्वस्थ होते । शाकाहारी प्रदेश हरियाणा, राजस्थानके व्यक्ति, मांसाहारी प्रदेश बंगाल अथवा केरलसे अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ हैं ।

७. “व्यक्ति सदैवसे मांस खाते आए हैं तथा खाते भी रहेंगे ।”

क्षमा कीजिए, यह सत्य नहीं है ! मानव इतिहासमें कई संस्कृतियां मांसाहारसे ‘परहेज’ करती हैं । वैदिक मान्यताके अनुसार जीनेवाले प्राचीन भारतीय आर्य, मांस नहीं खाते थे । कुछ क्रियाएं बीते समयमें अभ्यासमें थीं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि हम उसे अभी भी प्रचलित रखें । कलतक यक्ष्मा अर्थात टीबी प्राणघातक थी, आज नहीं है । तो क्या आज भी इसकी चिकित्सा न करवाएं ?

८. “मेरे शरीरको मांसकी (‘मीट’की) आवश्यकता है ।”

नहीं, कोई आवश्यकता नहीं है । आपका शरीर इसके बिना अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ एवं बलिष्ठ रहेगा । शाकाहारी स्वस्थ एवं बलवान रह सकते हैं ।

९. “मांसाहार छोड दिया तो सम्पूर्ण पृथ्वीपर मुर्गी एवं बकरी ही होंगी ।”

यदि व्यक्ति मांस खाना छोड देंगे तो कृषक (फार्मर्स) पशुओंकी ‘ब्रीडिंग’ करना छोड देंगे । ९९% मांस एवं अण्डे, ‘मीट फार्मिंग’से ही आते हैं ।

१०. “सम्पूर्ण संसारको खिलानेका एक मात्र उपाय ‘फैक्ट्री फार्मिंग’ ही है ।”

‘फैक्ट्री फार्मिंग’ न केवल जलवायु परिवर्तनका मुख्य कारण है; अपितु इससे भीषण विध्वंस भी होता है । एक किलो मांसके उत्पादन हेतु १६ किलो अनाज लगता है । अब आप ही विचार करें कि इस अनाजसे कितने व्यक्तियोंका पेट भर सकता है !

११. “मांसाहारी बुद्धिमान होते हैं, उदाहरणार्थ अमेरिका, यूरोपीय देश, चीन इत्यादि ।”

५५ मुसलमान देश, १००% मांसाहारी – विश्वके मुख्य ५०० विश्वविद्यालयोंमें (‘युनिवर्सिटीज’में) १ भी इनमें नहीं । १०० बडे चिकित्सालयोंमें इनका नाम नहीं । भूमिसे तेल निकालनेकी योग्यता नहीं, ‘अमेरिकन इंजिनियर’ निकालते हैं । बडे भवन, जैसे ‘बुर्ज खलीफा’के निर्माण योजनाकार, अमेरिकी तथा यूरोपीय है ।

१२. “’टी.वी.’में भी कहते हैं, ‘संडे हो या मंडे रोज खाओ अण्डे’ ।”

यह विज्ञापन पैसोंके कारण दिखाया जाता है । अण्डा उत्पादन करनेवालोंकी ‘यूनियन’ इसके लिए पैसे देती है ।

१३. “कसाई (Butcher) देहसे बलिष्ठ होते हैं ।”

इसका कारण उनका व्यवसाय नहीं, उनकी मानसिकता है । अत्यन्त निर्दय होनेसे उनमें मानव सुलभ संवेदनाएं नहीं रहतीं । वे किसी भी बातको लेकर कभी भी आत्मग्लानि अथवा पश्चाताप नहीं करते, चिन्तासे व्याकुल नहीं होते ।

हरियाणामें जो चरवाहे, जिन्हें हरियाणामें पाली कहते हैं, शाकाहारी होते थे । आजसे ३० वर्ष पूर्वतक वे बलिष्ठ होते थे; क्योंकि वे सम्पूर्ण दिवस प्रसन्न रहते थे, चिन्तामुक्त रहते थे । कुछ वर्षोंसे मद्य (शराब) एवं ‘नशे’ने उनके स्वास्थ्यको नष्ट कर दिया है । (लेखक – अज्ञात)



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