शास्त्र वचन
नश्चतस्र प्रदिशो भवन्तु । शं न: पर्वता: ध्रुवयो भवन्तु । शं न सिन्धव: शमु सन्त्वाप: ।
अर्थ : यह विस्तीर्ण प्रकाशका गोला सूर्य, हम मानवोंके लिए शान्ति लाता हुआ उदित हो, चारों दिशाएं हमारे लिए शान्तिको विकीर्ण करें ! ये अचल पर्वत हमें शान्तिका सन्देश सुनाएं ! ये समुद्र और नदियां भी हमें शान्तिका पाठ पढाएं !
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