अमात्सर्यं बुधाः प्राहुर्दाने धर्मे च संयमः ।
अवस्थितेन नित्यं च सत्येनामत्सरी भवेत् ॥
अर्थ : भीष्म, युधिष्ठिरसे कहते हैं : दान और धर्म करते समय मनपर संयम रखना अर्थात इस विषयमें दूसरोंसे ईर्ष्या न करना इसे विद्वान लोग ‘मत्सरताका अभाव’ कहते हैं । सदा सत्यका पालन करनेसे ही मनुष्य मत्सरतासे रहित हो सकता है ।
न मृत्युसेनामायान्तीं जातु कश्चित् प्रबाधते ।
ऋते सत्यमसत् त्याज्यं सत्ये ह्यमृतमाश्रितं ॥
अर्थ : ब्राह्मण पुत्र, पितासे कहता है : सत्यके बिना कोई भी मनुष्य सामने आते हुए मृत्युकी सेनाका कभी सामना नहीं कर सकता ; इसलिए असत्यको त्याग देना चाहिए; क्योंकि अमृतत्त्व सत्यमें ही स्थित है ।
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