शास्त्र वचन


तं पुत्रपशुसम्पन्नं व्यासक्तमनसं नरम् ।

सुप्तं व्याघ्रो मृगमिव मृत्युरादाय गच्छति ॥

अर्थ :  भीष्म, ब्राह्मण एवं पुत्र संवादके द्वारा युधिष्ठिरको समझाते हैं । पुत्र कहता है : जैसे सोए हुए मृगको बाघ उठा ले जाता है, उसी प्रकार पुत्र और पशुओंसे सम्पन्न एवं उन्हींमें मनको फंसाए रखनेवाले मनुष्यको एक दिन मृत्यु आकर उठा ले जाती है ।

देशकालौतु सम्प्रेक्ष्य बलाबलमथात्मनः ।

नादेशकाले किंचित् स्याद् देशकालौ प्रतीक्षताम् ।

तथा लोकभयाच्चैव क्षन्तव्यमपराधिनः ॥

अर्थ : प्रह्लादजी पौत्र बलिसे कहते हैं : देशकाल तथा अपने बलाबलका विचार करके ही मृदुताका (सामनीतिका) प्रयोग करना चाहिए । अयोग्य देश अथवा अनुपयुक्त कालमें उसके प्रयोगसे कुछ भी सिद्ध नहीं हो सकता; अतः उपयुक्त देशकालकी प्रतीक्षा करनी चाहिए । कहीं लोकके भयसे भी अपराधीको क्षमादान देनेकी आवश्यकता होती है ।



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