शास्त्र वचन


गुरुभ्य  आसनं  देयं  कर्तव्यं   चाभिवादनम् ।

गुरूनभ्यर्च्य युज्यन्ते आयुषा यशसा श्रिया ॥

अर्थ : भीष्म, युधिष्ठिरसे कहते हैं : गुरुजन पधारें तो उन्हें बैठनेके लिए आसन दे, प्रणाम करे, गुरुओंकी पूजा करनेसे मनुष्य आयु, यश और लक्ष्मीसे सम्पन्न होते हैं ।

सायं   प्रातर्मनुष्याणांशनं    वेदनिर्मितम् ।

नान्तरा भोजनं दृष्टमुपवासी तथा भवेत् ॥

अर्थ : भीष्म, युधिष्ठिरसे कहते हैं : शास्त्रमें मनुष्योंके लिए सायंकाल और प्रातःकाल दो ही समय भोजन करनेका विधान है । मध्यमें भोजन करनेकी विधि नहीं देखी गई है । जो इस नियमका पालन करता है, उसे उपवास करनेका फल प्राप्त होता है ।



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