रोहते सायकैर्विद्धं वनं परशुना हतम् वाचा ।
दुरुक्तं भीभत्सं न सम्रोहति वाक्क्षतम् ।।
– महाभारत, उद्योगपर्व
अर्थ : धनुषद्वारा किये गए आघातके घाव भर सकते हैं, कुल्हाडीसे काटा गया वन पुनः पल्लवित हो सकता है; परंतु शब्द-बाणद्वारा किया गया कटाक्षको भूलना संभवतः कठिन है।
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