नाहारं चिन्तयेत् प्राज्ञो धर्ममेकं हि चिन्तयेत् ।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते ।। – चाणक्य नीति
अर्थ : ज्ञानी अपने आहारकी चिंता नहीं करता, मात्र धर्मका चिंतन करता हैं; क्योंकि उसे ज्ञात होता है कि उसके आहारका नियोजन उसके जन्मके समय ही हो जाता है।
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