शास्त्र वचन


सुखस्य दु:खस्य न कोऽपि दाता ।
परो ददाति इति कुबुद्धिरेषा ।
अहं करोमि इति वृथाभिमान: ।
स्वकर्मसूत्रै: ग्रथितोऽहि लोक: ।।
– अध्यात्म रामायण 

अर्थ : हमें कोई सुख या दुःख नहीं देता । अज्ञानी यह सोचते हैं कि किसी औरके कारण हमें सुख और दुःख मिला  है । उसी प्रकार यह सोचना कि अपने प्रयासोंसे सुख प्राप्त कर सकते हैं या दुःख दूर कर सकते हैं यह अभिमान व्यर्थ है; क्योंकि सभी अपने-अपने पूर्वजन्मके कर्मोंसे बन्धे हुए होते हैं ।



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