किसका अवशेष नहीं रहना चाहिए ?


अग्निशेषमृणशेषं शत्रुशेषं तथैव च ।

पुन: पुन: प्रवर्धेत तस्माच्शेषं न कारयेत् ।।  
अर्थ : यदि अग्नि, ऋण और शत्रुका अंश मात्र भी अवशेष रह जाये तो उनकी  वृद्धि पुनः पुनः होती है अतः इनमेंसे किसीको भी अंश मात्र शेष न रहने दें !



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