मैं अपने श्रीगुरुसे क्यों जुडी, यह कुछ लोग मुझसे पूछते रहते हैं, तो आजसे प्रतिदिन मैं आपको एक कारण बताऊंगी |
मैंने बाल्यकालसे ही दूसरोंके लिए, अपने माता-पिताको त्यागमय जीवन व्यतीत करते हुए देखा था, वह भी आनंदपूर्वक ! मैं अपने आस-पास ऐसे व्यक्तिको ढूंढते रहती थी; किन्तु इसे दैवयोग कहें या और कुछ, मेरे श्रीगुरुसे (परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेसे) साक्षात्कारसे पूर्व, मुझे उच्च आदर्शयुक्त त्यागी व्यक्ति दिखाई नहीं दिए | सनातन संस्थासे जुडे हुए मुझे कुछ ही दिवस हुए थे, एक दिवस एक साधकद्वारा दिए हुए हमारे श्रीगुरुके कुछ ध्वनिमुद्रित(रिकार्डेड) सत्संग सुन रही थी उसमें उन्होंने बताया था, “अध्यात्म त्यागका शास्त्र है, यहां कुछ मिलता नहीं अपितु सब कुछ त्याग करना पडता है अर्थात् ईश्वरको पाने हेतु अपने सर्वस्व त्याग करना पडता है |” मुझे भी दूसरोंके लिए त्याग करना अच्छा लगता था; अतः यह सुननेके पश्चात्, ईश्वरको पानेके लिए सर्वस्व त्याग करनेका मार्ग हमने चुना और इस पथपर अग्रसर करनेवाले हमारे श्रीगुरुके शरणागत हुई | – तनुजा ठाकुर (२१.९.२०१७) क्रमश:
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