श्रीगुरु उवाच
रोगका लाभ साधनामें प्रगति हेतु लिया जा सकता है । उदाहरणके रूपमें, दांत न होना, भूख न लगना । इससे भोजनके प्रति रुचि-अरुचिसे आगे जानेमें सहायता मिलती है । एक बार किसी एक इन्द्रियपर विजय प्राप्त हुई तो अन्य इन्द्रियोंके सन्दर्भमें भी वैसा ही होकर साधनामें प्रगति हो सकती है । हां, यदि कोई इस स्थितिसे दुःखी हो तो उसकी प्रगति नहीं हो सकती ।
– परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था
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