जिसप्रकार पतिव्रता स्त्रीको सत्पुरुष धर्माचरणी पतिद्वारा अर्जित ऐहिक और पारलौकिक थाती स्वतः ही प्राप्त हो जाती है, उसीप्रकार सद्गुरुकी पूर्ण आध्यात्मिक शक्ति योग्य पात्रतावाले सत् शिष्यको स्वतः ही प्राप्त हो जाती है और तब गुरु शिष्यमें कोई भेद नहीं रह जाता और शिष्य गुरुमय हो जाता है ।
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