साधनाके सन्दर्भमें तन-मन-धनके त्यागमें धनका त्याग सबमें कनिष्ठ !   


धनका त्याग करना बहुतोंको कठिन लगता है, कारण भविष्यकालमें धन ही उपयोगमें आएगा, ऐसा वे सोचते हैं । साधनाके सन्दर्भमें तन-मन-धनके त्यागमेंसे धनका त्याग सबसे कनिष्ठ होता है; क्योंकि उससे स्वभावदोष निर्मूलन नहीं होता अर्थात मनका त्याग नहीं होता । इसके विपरीत धनका त्याग करनेसे अहं बढता है, इससे तनका त्याग करना अर्थात सेवा करना भी असम्भव हो जाता है । इस सन्दर्भमें एक अनुभव है : 
एक साधकने स्वयंका घर तथा सम्पत्ति किसी संस्थाको अर्पण किया; किन्तु इससे उनका अहं न्यून नहीं हुआ; उसमें प्रीति निर्माण नहीं हुई, अन्य साधकोंसे उनकी निकटता साध्य नहीं हुई, अन्तमें त्रस्त होकर वे साधना त्याग देनेका विचार करने लगे ! – परात्पर गुरु डॉ. जयन्त आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था



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