गांवमें रहनेवाले निरोगी एवं आनन्दी, तो नगरमें रहनेवाले लोग व्याधिग्रस्त ! 


नगरोंमें रहनेवाले लोग मायाके अधीन जीवन व्यतीत करते हैं । अधिकतर इस माया चक्रमें ईश्वरको भूल जाते हैं । अनेक सुख-सुविधाओंके होनेके कारण उनके शरीरमें कार्य करनेकी प्रवृत्ति नहीं रहती । उसी प्रकार प्रलोभन एवं स्वार्थके कारण उनकी वृत्ति संकुचित एवं प्रेमभाव रहित हो जाती है । इससे उनके मनकी निर्मलता एवं आनन्दका लोप होकर, उनका मन तनावग्रस्त रहता है । साथ ही, शरीरको कष्ट देनेकी प्रवृत्ति न रहनेसे शारीरिक व्याधियां उन्हें ग्रसित कर लेती हैं । इसके विपरीत गांवके लोग निर्मल और मिलनसार होते हैं । वे श्रम करने हेतु कष्ट उठाते हैं एवं मायाके प्रलोभनसे दूर होनेके कारण तथा ईश्वरपर श्रद्धाके कारण उनके मुखपर आनन्द दिखाई देता है । वे नीरोगी होते हैं । – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था

साभार : https://sanatanprabhat.org/



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