समष्टि साधना करनेसे अर्थात अन्य व्यक्तियोंसे साधना करवानेसे वातावरणकी रज-तम प्रधानता घटनेमें कुछ सहायता होती है । इससे व्यष्टि साधना करना थोडा सुलभ होता है । समष्टि साधना करनेवाला साधक केवल ‘मैं और मेरी’ साधनाका विचार न कर, अन्य व्यक्तियोंकी साधनाका भी विचार करता है । इससे उसमें व्यापकत्व आता है और उसकी आध्यात्मिक प्रगति तीव्र गतिसे होने लगती है । – परात्पर गुरु डॉ. जयन्त आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था
Leave a Reply