श्रीगुरु उवाच


जब कौरवोंपर गन्धर्वोंने आक्रमण किए और धर्मराज युधिष्ठिरको जब यह ज्ञात हुआ तब उन्होंने कौरवोंकी सहायता करनेका निर्णय लिया  । इसपर भीमने पूछा कि कौरवोंने हमें इतना प्रताडित किया है तब भी हमें भागकर उनकी सहायता क्यों करनी चाहिए  । धर्मराजने उत्तर दिया, “कुछ भी हुआ हो, तब भी कौरव हमारे बन्धु हैं; अतः हमें उनकी सहायता करनी चाहिए” । यहां तो अनेक कोटि हिन्दुओंको साधनापथपर पूज्य आसाराम बापूने अग्रसर किया है । कोई भी किसी भी सम्प्रदाय अनुसार साधना कर रहे हों, तो भी उनका यह कर्त्तव्य है कि वे पूज्य बापूके साथ पूरी दृढताके साथ खडे हों  । उनके भक्तोंको यह विश्वास होना चाहिए कि हम उनके साथ हैं  । – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले



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