मनोविकारोंपर जो चिकित्सा की जाती है, वह रोगके मूल कारणको दूर न कर, मात्र ऊपर-ऊपर उपाय करने जैसे होता है (इसीलिए मैंने मनोरोगियोंपर चिकित्सकीय उपाय न कर उनसे साधना आरम्भ करवाई) । मनोविकारोंके लिए कारणीभूत रज-तम प्रधान मन एवं बुद्धिको साधनासे सात्त्विक न करना अथवा मनोलय एवं बुद्धिलय न करना अर्थात मूलपर उपाय न कर सतही स्तरपर प्रयत्न करना हास्यास्पद है और यह क्षयरोगीको क्षयरोगकी औषधि न देकर मात्र खांसीकी औषधि देने समान है ! – परात्पर गुरु डॉ. जयन्त आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था
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