दिखने लगा है सिनौलीके नीचे दबा महाभारत कालका नगर, खुदाईमें मिली तांबेकी कृपाण (तलवार) व अन्य वस्तुएं !!


जनवरी २, २०१९


महाभारतकी धरा सिनौलीमें खुदाई प्रारम्भ होते ही नूतन रहस्य उजागर होने आरम्भ हो गए हैं । खुदाईमें निकले सभी प्राचीन अवशेष इस भूमिके नीचे किसी राजकीय परिवारके दफन होनेका साक्ष्य दे रहे हैं । शवाधान केन्द्र और प्राचीन रथ निकलनेके पश्चात तीसरे चरणकी खुदाईमें यहांसे नरकंकाल, ताम्बेकी तलवार, मृदभांड निकले हैं । सिनौलीमें खुदाई निरन्तर चल रही है, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थानके दलको एक प्राचीन भित्त (दीवार) यहां मिलनेके संकेत मिल रहे हैं ।

प्राथमिक खुदाईमें यहांपर कुछ ईंटें दिखाई पड रही हैं । इसे लेकर दल उत्साहित है और अभियानकी ओर बढ रहा है । गांवके लोगोंकी भी प्रसन्नताका अन्त नहीं है । इतिहासकारोंका दावा है कि शीघ्र ही सिनौलीकी भूमि किसी प्राचीन नगरीय बस्तीका इतिहास उगलेगी । यह बस्ती महाभारत कालकी होगी, या किसी अन्य कालकी यह शोधका विषय है ।


सिनौली गांवमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उत्खनन शाखा द्वितीय एवं भारतीय पुरातत्व संस्थान लाल किला देहली संयुक्त रूपसे डा. संजय मंजुल और डा. अरविन मंजुलके निर्देशनमें १५ दिसम्बरसे तीसरे चरणकी खुदाई कर रही है । यहां अभीतक एक कंकाल, ताम्र निर्मित कृपाण (तलवार), १६ मृद भाण्ड मिले चुके हैं । अब यहींपर कुछ ईंटें भी दिखाई दी हैं, जो भित्तमें है ।

शहजाद राय शोध संस्थानके निदेशक अमित राय जैनने दावा किया है कि यह कुछ और नहीं वरन शवाधान केन्द्रकी भित्त हो सकती है । यहां प्रथम चरणकी खुदाईमें बडा शवाधान केन्द्र मिल चुका है । इन ईंटोंकी लम्बाई-चौडाई अधिक है, जिनकी बनावटसे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह लगभग ४०००-५००० सहस्र वर्ष प्राचीन हो सकती हैं ।

महाभारतकी धरा होनेसे यहांकी खुदाईपर विश्वकी दृष्टि जमी हुई हैं । यह महाभारतयुगका राजकीय परिवार भी हो सकता है; क्योंकि सिनौलीसे कुछ ही दूरीपर हिंडन और कृष्णा नदीके मध्य बरनावा गांवमें बडे टीलेपर लाक्षागृहमें वह गुफा भी विद्यमान है, जिसके बारेमें दावा किया जाता है कि लाखके घरमें आग लगनेके पश्चात इसी गुफासे पांडव प्राण बचाकर निकले थे । बागपतके सिनौली और बरनावा आदि स्थानोंपर प्राचीन कालकी वस्तुएं मिलनेका प्रकरण जारी है ।

मोदीनगर स्थित एमएम महाविद्यालयमें इतिहास विषयके सहायक प्रो. डॉ. केके शर्मा और अमित राय जैन दावाकर बताते हैं कि यह क्षेत्र पुरातनकालके सन्दर्भसे अत्यधिक धनी है और यह क्षेत्र महाभारत कालसे जुडा हुआ है । बागपत और आसपासके क्षेत्रोंको महाभारतकालीन युगसे जोडकर देखा जाता रहा है । बागपतको उन पांच गांवोंमें एक माना जाता है, जिसे पाण्डवोंने युद्धसे पूर्व कौरवोंसे मांगा था ।

सिनौलीमें ख्रिस्राब्द २००४-२००५ में डा. धर्मवीर ङ्क्षसहके निर्देशनमें प्रथम चरणकी खुदाई हुई थी । उस समय ११७ नर कंकाल, दो ताम्र निर्मित ‘एंटीना सोल्ड तलवार’, दो ढाल, शवोंको जलानेकी भट्टी, सोनेके चार कंगन, गलेका हार, सैकडोंकी संख्यामें बहुमूल्य मनके मिले थे । उस समय इस बातपर मुहर लग गई थी कि एक न एक दिन सिनौलीकी भूमि प्राचीन भारतका बडा इतिहास अवश्य उगलेगी ।

गत वर्ष २०१८ में डा. संजय मंजुल और डा. अरविन मंजुलके निर्देशनमें सिनौलीमें द्वितीय चरणकी खुदाई हुई तो यहांसे आठ शवोंके अवशेष मिले थे । शवोंके साथ जो सामान मिला था, उससे इनके ‘राजसिक शव’ होनेका अनुमान लगाया गया था । साथ ही इनमेंसे कुछके ‘योद्धा’ होनेके संकेत मिलते हैं । दो ऐसे सामान मिले थें, जो पहलेके किसी उत्खननमें भारतीय उपमहाद्वीपमें नहीं मिले । पहला, तीन रथ, जो लकडीके थे; परन्तु उनके ऊपर तांबे और कांस्यका काम था । दूसरी चीज लकडीकी टांगोंवाले तीन चारपाईनुमा ‘ताबूत’ थे, तीनमेंसे दोके ऊपर तांबेके और पीपलके पत्तेके आकारकी सजावट थी । कई भारतीय पौराणिक कथाओंमें सुननेको मिलता है कि राजा विशाल रथोंपर बैठा करते थे, उसके कुछ प्रमाण सादिकपुर सनौली गांवमें मिले थे ।

सिनौलीकी प्रधान उषा देवीने बताया कि लोगोंकी दृष्टि इसपर है । उनके गांवकी भूमि प्राचीन भारतसे पर्दा उठाएगी, जिसके पश्चात एक बार पुनः लोगोंकी महाभारतसे जुडी स्मृतियां ताजा हो सकेंगीं ।

 

“यह महाभारत और रामायणको काल्पनिक कथा बतानेवाले बुद्धिहीनोंके लिए साक्ष्य है । सम्भवतः भूदेवीको ज्ञात था कि भारतमें ऐसा काल आएगा, जब चहुंओर निधर्मी होंगें, जो अपने पूर्वजों और अपनी महान विरासतपर ही प्रश्नचिह्न लगाएंगें, तभी उन्होंनें यह सब अपने गर्भमें छिपाकर रखा । इससे यह भी स्पष्ट है कि जितनी प्राचीन है यह भूमि, उतना ही प्राचीन है यह सनातनी संस्कृति जिसपर सभी हिन्दुओंको गर्व होना चाहिए !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

स्रोत : जागरण



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