जब हमारी विचार-प्रक्रिया स्थूल स्तरकी होती है तो समस्याओंका समाधान भी स्थूल होता है । विवेक जागृत होनेपर ही विचार चिन्तनमें परिवर्तित होता है और किसी भी समस्याका हम सूक्ष्म उपाय ढूंढ पाते हैं; इसलिए जबतक हममें यह क्षमता निर्माण न हो तबतक किसी गुरु या अध्यात्मविदके मार्गदर्शन अनुसार उपाय योजना क्रियान्वित करनी चाहिए ।
मैंने कुछ साधकोंको उनकी अशक्त (कमजोर) स्मरणशक्तिके विषयमें जब भान कराया तो उन्होंने स्मरणशक्ति बढाने हेतु औषधियां लेना आरम्भ कर दीं । वस्तुतः यदि हमारे मनमें विषय-वासनाओंके एवं अहंके संस्कार अत्यधिक होते हैं तो उनके कारण हमपर एक सूक्ष्म मोटा काला आवरण होता है; फलस्वरूप हमारी स्मरणशक्ति अशक्त होती है अर्थात विषय-वासनाओं एवं अहंकारका संस्कार जितना तीव्र होगा, स्मरणशक्ति उतनी ही अशक्त होगी; इसलिए स्मरणशक्ति बढाने हेतु औषधि नहीं, अपितु दोष एवं अहंकारको दूर करने हेतु स्वभावदोष निर्मूलन एवं अहं निर्मूलनकी प्रक्रिया सीख लें और उसे अपने जीवनमें उतारें ! इस हेतु अधिकसे अधिक बार प्रसंग अनुरूप स्वयंसूचना दें ! औषधि स्मरणशक्ति बढानेकी योग्य उपाययोजना नहीं है, यह ध्यान रखें ! -तनुजा ठाकुर
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