सोलह संस्कार सीखनेका महत्व !
मानपुर आश्रम परिसरमें हम जैविक खेती कर रहे हैं । पहले कभी जैविक खेती नहीं की है; अतः उसे भिन्न माध्यमोंसे सीखनेका भी प्रयास कर रहे हैं । ऐसे ही एक दिवस मैं जैविक खेतीका (आर्गेनिक फार्मिंगका) एक ‘वीडियो’ देख रही थी तो उसमें बताया जा रहा था कि बीजको रोपनेसे पूर्व ही उसपर गोबर और गोमूत्रसे संस्कार करना चाहिए, इससे बीजसे उत्पन्न पौधोंमें कीट नहीं लगते हैं और बीजसे अच्छे पौधे प्राप्त होते हैं ।
मैं सोचने लगी कि यह सब तो पुरातन ज्ञान है और जैसे हमारे पूर्वजोंने वनस्पति जगतके बीजपर संस्कार करना चाहिए, यह बताया है, वैसे ही मनुष्यके जन्मसे पूर्व भी गर्भाधानके द्वारा बीजपर संस्कार किया जाता था, जिसका धर्मग्लानिके कारण लोप हो गया और इतना ही नहीं गर्भमें भ्रूण एवं गर्भस्थ शिशुपर भी सोलह संस्कार अन्तर्गत कुछ और विधियां की जाती हैं । आज वह सब कुछ नहीं होता है और परिणाम आप सबके सामने है ।
इसलिए जिनकी सन्तानोंका विवाह हो रहा है, उन्हें ये सब संस्कार सिखानेका अब समय आ गया है अन्यथा जैसे आज अनेक लोगोंको गर्भसे ही अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है, वैसे ही उनके बच्चोंको भी होगा । जो नव विवाहित हैं, वे सोलह संस्कारके ग्रन्थोंका अभ्यासकर इसे सीख सकते हैं ।
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