सूर्य, सात घोडे तथा इनसे सम्बन्धित कुछ रोचक तथ्य (भाग – २)


सातसे न्यून अथवा अधिक क्यों नहीं ?
यह प्रश्न अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि सूर्यदेवद्वारा सात ही घोडोंकी ‘सवारी’ क्यों की जाती है ? यह सङ्ख्या सातसे न्यून अथवा अधिक क्यों नहीं है ? यदि हम अन्य देवोंकी ‘सवारी’ देखें, तो सूर्यदेवके सात घोडे क्यों ? क्या है इन सात घोडोंका इतिहास तथा ऐसा क्या विशेष है इस सात सङ्ख्यामें, जो सूर्यदेवद्वारा इसका ही चुनाव किया गया ?

सात घोडे तथा सप्ताहके सात दिन
सूर्यदेवके रथको सम्भालनेवाले सात घोडोंके नाम हैं – गायत्री, भ्राति, उस्निक, जगति, त्रिस्तप, अनुस्तप एवं पंक्ति । कहा जाता है कि ये सात घोडे, एक सप्ताहके सात दिनोंको दर्शाते हैं । यह तो मात्र एक मान्यता है, जो वर्षोंसे सूर्यदेवके सात घोडोंके सन्दर्भमें प्रचलित है; किन्तु क्या इसके अतिरिक्त भी कोई कारण है, जो सूर्यदेवके इन सात घोडोंके चित्रको अधिक स्पष्ट करता है ?

सात घोडे प्रकाशको भी दर्शाते हैं
यदि साधारण स्थितिमें देखा जाए तो ये सात घोडे प्रकाशको भी दर्शाते हैं । एक ऐसा प्रकाश, जो स्वयं सूर्यदेवता अर्थात सूर्यसे ही उत्पन्न होता है । यह तो सभी जानते हैं कि सूर्यके प्रकाशमें सात विभिन्न रङ्गोंके प्रकाश पाए जाते हैं, जो इन्द्रधनुषका निर्माण करते हैं ।

बनता है इन्द्रधनुष
यह प्रकाश, एक धुरसे निकलकर विस्तृत होता हुआ सम्पूर्ण आकाशमें सात रङ्गोंका भव्य इन्द्रधनुष बनाता है, जिसे देखनेका आनन्द जगतके श्रेष्ठतम आनन्दोंमें एक है ।

प्रत्येक घोडेका रङ्ग भिन्न
सूर्यदेवके सात घोडोंको भी इन्द्रधनुषके इन्हीं सात रङ्गोंसे जोडा जाता है । ऐसा इसलिए; क्योंकि यदि हम इन घोडोंको ध्यानसे देखें तो प्रत्येक घोडेका रङ्ग भिन्न है तथा वह एक-दूसरेसे मेल नहीं खाता है । मात्र यही कारण नहीं; अपितु एक अन्य कारण भी है जो यह दर्शाता है कि सूर्यदेवके रथको चलानेवाले सात घोडे, स्वयं सूर्यके प्रकाशके ही प्रतीक हैं ।

पौराणिक गाथासे भिन्न
यदि आप किसी मन्दिर अथवा पौराणिक गाथाको दर्शाते किसी चित्रको देखेंगे तो आपको एक अन्तर स्पष्ट दिखाई देगा । कई बार सूर्यदेवके रथके साथ बनाए गए चित्र अथवा मूर्तिमें सात विभिन्न घोडे बनाए जाते हैं, ठीक वैसा ही, जैसा पौराणिक कथाओंमें बताया जाता है; किन्तु कई बार मूर्तियां इससे थोडी भिन्न भी बनाई जाती हैं ।

भिन्न-भिन्न घोडोंकी उत्पत्ति
कई बार सूर्यदेवकी मूर्तिमें रथके साथ मात्र एक घोडेपर सात सिर बनाकर मूर्ति बनाई जाती है । इसका अर्थ है कि मात्र एक शरीरसे ही सात भिन्न-भिन्न घोडोंकी उत्पत्ति होती है । ठीक उसी प्रकार, जैसे सूर्यके प्रकाशसे सात भिन्न रङ्गोंके प्रकाश निकलते हैं । इन दो कारणोंसे हम सूर्यदेवके रथपर सात ही घोडे होनेका कारण स्पष्ट कर सकते हैं ।

सारथी अरुण
पौराणिक तथ्योंके अनुसार, सूर्यदेव जिस रथपर आरूढ हैं, उसे अरुणदेवद्वारा चलाया जाता है । एक ओर अरुणदेवद्वारा रथकी लगाम तो सम्भाली ही जाती है; किन्तु रथ चलाते हुए भी वे सूर्यदेवकी ओर मुख करके ही बैठते हैं ।

मात्र एक ही पहिया
रथके नीचे मात्र एक ही पहिया लगा है, जिसमें १२ तिल्लियां लगी हुई हैं । यह अत्यन्त आश्चर्यजनक है कि एक बडे रथको चलानेके लिए मात्र एक ही चक्र (पहिया) है; किन्तु इसे हम भगवान सूर्यका चमत्कार ही कह सकते हैं । कहा जाता है कि रथमें मात्र एक ही पहिया होनेका भी एक कारण है ।

पहिया एक वर्षको दर्शाता है !
यह अकेला पहिया एक वर्षको दर्शाता है तथा उसकी १२ तिल्लियां एक वर्षके १२ महीनोंका वर्णन करती हैं ।

ऋतुओंका विभाजन
कहा जाता है कि इन्हीं प्रतिक्रियाओंपर संसारमें ऋतुओंका विभाजन किया जाता है । इस प्रकार मात्र पौराणिक रूपसे ही नहीं; अपितु वैज्ञानिक तथ्योंसे भी जुडा है, सूर्यदेवका यह विशाल रथ ।



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