दो दिवस पूर्व इन्दौरकी एक ‘दूकान’में कुछ आवश्यक सामग्री क्रय करने गई थी । उस ‘दूकान’के स्वामीने मुझे दीदी कहकर सम्बोधितकर अपनी सामग्री दी । आप सोच रहे होंगे इसमें विशेष बात क्या है ? धर्मप्रसारके मध्य यहां-वहां जाना होता ही है और आज उत्तर भारतके छोटे-छोटे उपनगरोंमें (कस्बोंमें) पुरुषवर्ग स्त्रियोंको ‘मैडम’ कहकर सम्बोधित करने लगे हैं । बहन, दीदी, भाभी, चाची, काकी, मौसी, बुआ ये सब आदारार्थी शब्द हैं, जिसमें लेशमात्र भी वासना नहीं होती है, वहीं ‘मैडम’ शब्द बोलनेसे पुरुषको, स्त्रीको अनुचित रूपसे देखने, उपहास करने, अनुचित रीतिसे सर्व कर्म करनेका अधिकार प्राप्त हो जाता है ।
पुरुषवर्गसे मैं यह निवेदन करूंगी कि आज वासनारूपी भस्मासुर सर्वत्र विचरण कर रहा है; अतः आप अपने लिए अपनी पुरातन संस्कृतिका पालन आरम्भ करें, इससे आपकी पत्नी, बहन और पुत्रीको आप सुरक्षा देनेकी ओर एक पग बढा रहे हैं, ऐसा समझें ! अंग्रेजीमें कहते हैं, ‘charity begins at home’; अतः यह सुकृत्य आजसे आरम्भ करें और अपने स्त्री वर्गको सुरक्षित करें ! (१७.५.२०१८)
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