एक स्त्री साधिका अपने मनसे गायत्रीका जप करती थीं, उन्हें मासिकसे सम्बन्धित कष्ट थे और साथ ही उन्हें अत्यधिक क्रोध भी आता था । यह उन्होंने एक सत्संगमें शंका समाधानके समय व्यक्त किया ।
कुछ पढी-लिखी स्त्रियां इस बातका विरोध करती हैं कि हमारे धर्मग्रन्थोंमें स्त्री और पुरुषके साथ भेद-भाव किया गया है और स्त्रियोंको ॐ और गायत्री मन्त्रजप करनेसे रोका गया है । सच्चाई यह है कि वैदिक कालमें स्त्रियोंके उपनयन संस्कार हुआ करते थे एवं उन्हें वेदाध्ययनके अधिकार भी प्राप्त थे । कालानुसार धर्मका ह्रास हुआ और सामान्य जनकी साधना अल्प होती गई; अतः स्त्रियों एवं शूद्रोंको (अर्थात जिनमें बौद्धिक क्षमता अल्प हो और आध्यात्मिक स्तर भी अल्प हो) तेजोपासना करनेसे मना किया गया । इस प्रकारके नियम बनाते समय हमारे अध्यात्मविदोंने कम आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्तियोंके हितकी भावनाको ध्यानमें रखकर नियम बनाए; परन्तु धर्मशिक्षणके अभावमें कुछ तथाकथिक बुद्धिवादी इसका कुअर्थ निकालकर धर्मग्रंथोंका दुष्प्रचार करते हैं । मैं एक स्त्री हूं और अपने १५ वर्षोंके आध्यात्मिक जीवनमें आजतक मैंने कभी भी किसी भी सन्तद्वारा मेरे स्त्री होनेके कारण साधना बताते समय किसी भी प्रकारका भेद-भाव करते हुए नहीं पाया ।
एक बार पितृ दोष निवारण हेतु एक सन्त, परम पूज्य परुलेकर महाराज, जो नेत्रहीन सन्त हैं, उनके आश्रममें गुरु आज्ञा अनुसार एक श्राद्ध विधि कराने गई थी और कुछ कारणवश मेरा बडा भाई नहीं आ पाया था; परन्तु मेरा छोटा भाई वहां उपस्थित था और मैंने उन सन्तको बताया भी कि मेरा छोटा भाई आया है; परन्तु उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “आप ही यह विधि करें !” इससे मुझे समझमें आया कि अध्यात्मके खरे अधिकारी अर्थात सन्त कभी भी कोई भी भेदभाव नहीं करते तो उनकेद्वारा लिखित ग्रंथोंमें भेदभाव कैसे हो सकता है ?!
स्त्रियोंको तेजोपासनाके लिए मनाही क्यों है ?, यह बताना चाहेंगे । इस बारेमें मेरे श्रीगुरुने अत्यधिक वैज्ञानिक पद्धतिसे शास्त्रको बताया है । मेरे श्रीगुरु परात्पर गुरु डॉ. जयंत बालाजी आठवलेके अनुसार, स्त्रियोंकी जननेन्द्रियां शरीरके अंदर होती हैं; अतः आध्यात्मिक क्षमता यदि ५०% से अल्प हो और गुरुका जीवनमें प्रवेश न हो तो आध्यात्मिक शक्तिका संचार ऊपरी दिशा अर्थात सुषुम्ना नाडीमें स्थित चक्रोंके भेदन हेतु नहीं हो पाता है और वह शक्ति स्त्रियोंके प्रजनन सम्बन्धी अंग, जो शरीरके अंदर होते हैं, उसमें संग्रहित होने लगती है; अतः उससे जो भी स्त्रियां गर्भधारणकी आयुके वर्गमें हैं, उन्हें प्रजनन सम्बन्धी कष्ट हो सकते हैं; अतः ऐसी स्त्रियोंने अपने मनसे तेजोपासना करना टालना चाहिए ।
पुरुषोंकी जननेन्द्रियां शरीरके बाहर होनेके कारण उनकी आध्यात्मिक क्षमता अल्प हो तो भी कुछ प्रमाणमें शक्ति बाहर निकल जाती है; परन्तु यदि आध्यात्मिक क्षमता अल्प हो तो पुरुषोंको भी तेज तत्त्वकी उपासनासे कष्ट हो सकता है, मात्र यदि गुरुने वह साधना बताई हो तो स्त्री हो या पुरूष, किसीको भी कष्ट नहीं होता ! – तनुजा ठाकुर
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