एक व्यक्तिने पूछा है कि मेरे एक सम्बन्धीको सूक्ष्म समझमें आता है; किन्तु उनसे बात करनेसे ही ऐसा लगता है कि उनमें अहं बहुत अधिक है और उन्हें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट भी है और वे अधिक साधना भी नहीं करते हैं तो भी वे सूक्ष्म सम्बन्धी जो बातें बताते हैं, वह सच होती है, ऐसा कैसे होता है ?


सूक्ष्मके विषयमें जाननेकी दो पद्धतियां हैं, एक तो आप योग्य साधना करते जाएं, जैसे-जैसे आपका मन एवं बुद्धि, विश्वमन और विश्वबुद्धि अर्थात ईश्वरसे एकरूप होता जाएगा, आपका सूक्ष्म ज्ञान बढता जाएगा एवं परिष्कृत होता जाएगा; किन्तु उसकी पुष्टि आपको किसी सन्तसे तबतक कराना चाहिए जबतक वे न कह दें कि अब आपको पूछनेकी आवश्यकता नहीं है । किन्तु यहां साधना किसी योग्य गुरुके मार्गदर्शनमें होना चाहिए या वह व्यक्ति किसी उच्च कोटिके देवी या देवताका उपासक हों या ज्ञानमार्गी या ध्यानमार्गी हों तो भी सूक्ष्म सम्बन्धी ज्ञान होना सम्भव है; किन्तु उनका आध्यात्मिक स्तर ६१% से अधिक होना चाहिए और उन्हें आध्यात्मिक कष्ट नहीं होना चाहिए ।
 दूसरी पद्धतिके अनुसार सूक्ष्मका ज्ञान उन्हें भी होता है, जिन्हें अनिष्ट शक्तियोंका अधिक कष्ट होता है, ऐसे व्यक्तिका अहं अधिक होता है या उसमें दोष अधिक होते हैं या घरमें पितृदोषका प्रमाण अधिक होता है तो भी उस घरके सदस्यको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट हो जाता है । ऐसे व्यक्तिकी मनोदेह (मन) और कारणदेह (बुद्धि) अनिष्ट शक्तियोंसे आवेशित होती है; इसलिए अनिष्ट शक्ति उनके मन एवं बुद्धिपर नियन्त्रण कर लेती है और मृत्यु उपरान्त जैसे ही स्थूल देहकी मर्यादा समाप्त हो जाती है तो लिंगदेहको सूक्ष्म जगत, उसके आध्यात्मिक स्तर अनुरूप समझमें आने लगता है । यह मैं कैसे बता रही हूं; क्योंकि मैंने देखा है कि ‘उपासना’के कुछ साधकोंके सगे-सम्बन्धी जो ठीकसे साधना नहीं करते थे या कुछ तो विरोधी भी थे; किन्तु मृत्यु उपरान्त वे गति हेतु उपासनाके आश्रममें तत्काल आ गए । मैंने इसकी अनेक बार अनुभूति ली है, इससे मुझे ज्ञात हुआ कि मृत्यु उपरान्त उन्हें बहुतसी बातें त्वरित समझमें आने लगती हैं, जो मृत्युसे पूर्व उन्हें व्यर्थ लगती थीं । यह मैं आपको इसलिए बता रही हूं कि आप समझ सकें कि जिनका उच्च आध्यात्मिक स्तर न हों, जो स्वयं साधना नहीं करते हों या जिनके घरमें कष्ट हो या जो स्वयं कष्टमें हों या जिनका अहं अधिक हो उन्हें सूक्ष्म इसलिए समझमें आता है; क्योंकि उनकी देह भूतावेषित होती है । आज देशमें आप अनेक हिन्दुओंको देख ही रहे हैं, वे खुलकर राष्ट्रद्रोही या धर्मद्रोही समान बातें या कृत्य करते हैं, यह भी उनकी सूक्ष्म देह, अनिष्ट शक्तियोंमें नियन्त्रणमें होनेके कारण होता है ।
 आध्यात्मिक शोधके समय एक और बात ज्ञात हुई कि यदि किसीको बाल्यकालसे ही अर्थात गर्भसे अनिष्ट शक्तियोंका तीव्र कष्ट हो तो उसे भी सूक्ष्म समझमें आता है । हमारी एक साधिका हैं, उनकी माताजी किसी और हिन्दू पन्थसे हैं, जो पितरोंके लिए विशेष कुछ करते नहीं हैं, उनके माताजीके कुटुम्बमें अत्यधिक पितृदोष है; इसलिए उन्हें भी बाल्यकालसे ही अत्यधिक कष्ट रहा है, जिसे वे सामान्य कष्ट ही समझती थीं और अपने कष्टोंके निवारण हेतु अपनी बुद्धिसे कुछ न कुछ उपचार या उपाय भी करती रहती थीं; किन्तु जब वे उपासनाके मार्गदर्शनमें योग्य साधना करने लगीं तो उन्हें सब समझमें आया कि उनके साथ सब क्यों हो रहा था ? उनका आध्यात्मिक स्तर ४०% था; किन्तु उन्हें सूक्ष्म बहुत ही सरलतासे समझमें आता है । वस्तुत: उनका मन एवं बुद्धि अनिष्ट शक्तियोंसे आवेशित होनेके कारण वह विचार उनसे आते थे । ऐसे साधकोंको योग्य साधना करते समय बहुत अधिक कष्ट होता है या अडचनें आती हैं या वे अनेक बार वे प्रकट हो जाते हैं या उन्हें अपने गुरु या आराध्यके प्रति विकल्प आता है और वे अनेक बार साधना छोड भी देते हैं । कुछ साधकोंको जब अनिष्ट शक्तियोंके कारण कष्ट होने लगता है और उनकी पूर्व जन्मकी साधना प्रगल्भ हो अर्थात उनका आध्यात्मिक स्तर ६१% से अधिक हो तो अनिष्ट शक्तिके आक्रमण होनेपर उनकी सूक्ष्म इन्द्रियां एवं कर्मेन्द्रियां जाग्रत होकर अनिष्ट शक्तियोंका प्रतिकार करने लगती हैं और इसी क्रममें अकस्मात उनकी सूक्ष्म इन्द्रियां जाग्रत हो जाती हैं ।
 इसलिए एक सरलसा शास्त्र जान लें कि यदि कोई व्यक्ति किसी योग्य गुरुके संरक्षणमें साधना नहीं करता है और उसका आध्यात्मिक स्तर ६१% से कम है तो उसे जो सूक्ष्म समझमें आता है वह अनिष्ट शक्तियोंके कारण हो सकता है और उनका सूक्ष्म ज्ञान पूर्ण रूपसे परिष्कृत नहीं होता है अर्थात वह पूर्ण सत्य नहीं होता है । अनेक बार मैंने देखा है कि अनिष्ट शक्तियां किसी व्यक्ति या साधकको आवेशितकर उनके माध्यमसे दूसरे व्यक्तिके विषयमें जान बूझकर कुछ बातें सच बताती हैं, जिससे वह व्यक्ति जो बता रहा है, उससे उसका अहं बढ जाए और वह उसके देहमें अधिक कालतक रह सके एवं सामनेवाला व्यक्ति जिसके विषयमें वह बता रहा है, वह उसके प्रभावमें आकर उसका सम्मान करने लगे । ऐसी अनिष्ट शक्तियोंको लोकैष्णा होती है अर्थात लोग उनकी स्तुति करे, यह इच्छा होती है और वे मृत्यु उपरान्त भी किसी व्यक्तिकी देहको आवेशितकर उसे पूर्ण करती हैं । अर्थात जैसे किसी लिंगदेहको मद्यका व्यसन हो और जब वह मृत्युको प्राप्त हो जाता है और वैदिक सनातन धर्म अनुसार उसका श्राद्ध इत्यादि न हो और वह साधक भी न हो तो उसे गति नहीं मिलती है तो वह किसी और व्यक्तिकी देहको आवेशितकर अपनी इच्छाकी तृप्ति करता है । उसी प्रकार ‘कोई स्तुति करे’, यदि किसीमें यह विचार बहुत प्रगल्भ हो और उसे गति न मिली हो तो वह भी किस व्यक्तिकी देहको आवेशित कर लेता है । मैं एक बार ‘फेसबुक’पर एक ‘रियलिटी शो’में एक बच्चीका नृत्य देख रही थी; उसका नृत्य बहुत ही अच्छा था; किन्तु उस बच्चीको तीव्र आध्यात्मिक कष्ट था और स्थूल नेत्रोंसे लग रहा था कि वह बच्ची नृत्य कर रही है; किन्तु खरे अर्थोंमें वह उससे कोई और करवा रहा था । वहां उपस्थित निर्णायक दल उस बच्चीके नृत्यसे आश्चर्यचकित था और उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा था; क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वह बहुत ही प्रतिभाशाली है और जो कर रही है, सचमें असम्भव जैसा ही था । यह है सूक्ष्म जगत ! इसे समझने हेतु योग्य गुरुके शरणमें योग्य साधना करनी पडती है, तभी परिष्कृत ज्ञान मिलता है । इसी ज्ञानको देनेके लिए हमारे यहां गुरुकुल पद्धति थी, जिसमें शिष्य १२ वर्ष गुरुकी सेवा करता था, भिक्षा मांगकर आश्रमके लिए लाता था, गुरुकी आज्ञाका पालन करता था और तब गुरु उसकी पात्रता देखकर, उन्हें यह ज्ञान देते थे । आजकल लोग दूरभाषपर और घर बैठे सब पाना चाहते हैं जो असम्भव है ।


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