समष्टि हितार्थ कार्य करने हेतु सतर्कता एवं तत्परता अति आवश्यक गुण है !


सूक्ष्म जगत
आज रात्रि ढाई बजे उठकर हिन्दू वार्ताका संकलन कर रही थी । संकलनके समय नूतन धारिका (न्यू डॉक् फाइल) खोलकर उसमें विषय संकलित कर रही थी । आज योगासन प्राणायाम भी इस सेवाके कारण नहीं किया । डेढ घण्टेकी सेवा हो चुकी थी; अतः पांच बजे सोचा कि थोडा दूध ले लेती हूं और थोडी देर ध्यान कर लेती हूं, उसके पश्चात आजका पंचांग भेजकर, उसकी भाषा शुद्धि करुंगी । ध्यानसे उठी और जब संगणकपर सेवा आरम्भ करने लगी तो ‘माइक्रोसॉफ्ट डॉक् फाइल’को संरक्षित करने गई तो ‘not responding’ का ‘शुभ सन्देश’ आ गया । समझ गई, अनिष्ट शक्तियां मेरी असतर्कताका लाभ उठा गईं ! पांच धारिकाएं नूतन थीं, जिसमें कुछ न लिखकर या कॉपीकर रखा; किन्तु पुनः सभी धारिकाएं खोलनेपर उसके विषयके साथ मिल गई, मात्र हिन्दू वार्ता नहीं मिली ! ऐसा है हमारा धर्मक्षेत्र, वस्तुत: यह एक कुरुक्षेत्र है । कहते हैं न सावधानी हटी और दुर्घटना घटी ! यदि उसी समय मैं धारिकाको संरक्षित (सेव) कर लेती तो यह दुर्घटना नहीं घटती, अब पुनः डेढ घण्टे देने पडेंगे ! एक तो समयका ऐसे ही अभाव रहता है ऊपरसे ये ‘अनिष्ट शक्तियां’ नूतन प्रपंच रचती रहती हैं; किन्तु आजकी इस घटनाके लिए मेरी असतर्कता उत्तरदायी है ! अर्थात धर्मयुद्धमें अंशमात्रकी भी चूक अपेक्षित नहीं होती !
हिन्दू वार्ताके संकलन, भाषा शुद्धिसे पूर्व ही अत्यधिक कष्ट होने लगता है कल भी रात्रिमें सोचा तो इतना कष्ट होने लगा कि मुझे मालिश करवा कर सोना पडा ! (२.६.२०१८)



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