उच्च आध्यात्मिक स्तरके जीवोंकी मृत्यु उपरान्त गति न मिलनेका कारण
वर्तमान कालमें योग्य प्रकारसे साधना एवं धर्माचरणके अभावके कारण अनेक घरोंमें अनिष्ट शक्तियोंद्वारा कष्ट हो रहा है जिनका कारण सामान्य व्यक्तिको तो क्या अनेक अध्यात्मविदोंको भी समझमें नहीं आता है । पिछले पांच दशकोंसे अतृप्त पितरोंके कारण भी कष्टके प्रमाणमें अत्यधिक वृद्धि हुई है । धर्मपालन न करनेके कारण जो अर्जित एवं आवश्यक शक्ति एक गृहस्थके पास होना चाहिए वह नहीं होती; परिणामस्वरूप अतृप्त पितर तो कष्ट देते ही हैं; परन्तु साथ ही सूक्ष्म जगतकी बलाढ्य आसुरी शक्ति जिन्हें मान्त्रिक कहते हैं, वे भी ऐसे अतृप्त पितरोंके माध्यमसे सामान्य गृहस्थके कष्टकी तीव्रताको बढा देते हैं, इसी सन्दर्भमें आज एक ऐसी ही अनुभूति एवं उसका विवेचन प्रस्तुत करती हूं ।
ख्रिस्ताब्द २००९ में मैं झारखण्ड स्थित अपने पैतृक ग्राममें एकान्तवास कर व्यष्टि साधना कर रही थी । एक दिवस हमारे एक दूरकी सम्बन्धी हमसे मिलने आईं । वे कहने लगे कि उनके पतिको मानसिक रोग था और कुछ वर्ष पूर्व युवावस्थामें ही उन्होंने आत्महत्या कर ली थी और उनकी आत्महत्याके पश्चात् उनके इकलौते पुत्रने भी पढाई पूर्ण नहीं की तथा अब उसकी कहीं चाकरी (नौकरी) नहीं लग रही है, इतना ही नहीं वह कुसंगमें पड व्यसनी हो गया है, ऐसेमें उन्हें समझमें नहीं आ रहा है कि वह क्या करे और यह सब उनके साथ ही क्यों हो रहा है ?
जब मैंने उनके पतिके विषयमें सूक्ष्म परीक्षण किया तो ज्ञात हुआ कि उनके पतिका आध्यात्मिक स्तर पचास प्रतिशत था और सूक्ष्म जगतके मान्त्रिकोंने उन्हें बन्धक बना रखा है । मैंने इस बातकी पुष्टि हेतु उनसे पूछा कि क्या उनके पति उन्हें कभी स्वप्नमें दिखाई देते हैं तो वे स्त्री कहने लगीं कि मेरे पति मुझे अनेक बार एक कोनेमें डरे हुए एवं सिमटे रोते हुए दिखाई देते हैं, उनके रुदनको सुनकर मेरा मन चीत्कार करने लगता है और मैं नींदसे घबराकर उठ जाती हूं । मैंने उस स्त्रीको बताया कि उनके पतिको गति नहीं मिली है, उन्हें सूक्ष्म जगतमें बन्धक बना कर रखा गया है; क्योंकि उन्हें अनिष्ट शक्तियां जो अनुचित कर्म करनेका आदेश दे रही हैं वे उसे माननेको सिद्ध नहीं है । उन्हें यह सुनकर आश्चर्य हुआ; क्योंकि वे अत्यन्त कर्मकाण्डी हैं और धर्मभीरु भी ! उन्होंने कहा कि वे अपने पतिके लिए यथासम्भव श्राद्ध इत्यादि कर्म करवाए थे और यह जानना चाहती थी कि ऐसा सब करनेपर भी उनके पति बन्धक कैसे बन गए ? मैंने जो उन्हें विवेचन दिया वह प्रस्तुत कर रही हूं, हो सकता है इससे आपको भी कुछ सूक्ष्म जगतके तत्त्व समझमें आये –
वस्तुतः उनके पतिको जन्मसे ही कष्ट था और अपने आध्यात्मिक स्तर अनुरूप साधना नहीं करनेके कारण और घरमें व्याप्त तीव्र पितृदोषके कारण उनके कष्टका प्रमाण बढता चला गया और अन्ततः वे मान्त्रिकोंके हाथों बलि चढ गए । आज अनेक हिन्दू यह प्रश्न मुझसे पूछते हैं कि हमने तो श्राद्ध एवं पितृ शान्ति हेतु विधियां करवाई हैं, ऐसेमें हमारे पितरोंको गति क्यों नहीं मिली ? उनके कारण निम्नलिखित हैं –
- यदि श्राद्ध विधि की जाए; परन्तु उसे पूर्ण श्रद्धासे नहीं की जाए तो हमें उसका लाभ नहीं मिलता है, श्राद्ध शब्दकी उत्पत्ति ही श्रद्धा शब्दसे हुई है । आज धर्मशिक्षणके अभावमें अनेक हिन्दू श्राद्धकी विधि तो करते हैं; परन्तु मात्र उसे करना है, इसलिए करते हैं, उसमें भी पुरुषोंमें यह श्रद्धाभाव जो सबसे आवश्यक घटक है, वह अत्यधिक अल्प प्रमाणमें दिखाई देता है; इसलिए अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है ।
- अनेक हिन्दू अन्त्येष्टि एवं श्राद्ध विधिमें जो शास्त्रोक्त धर्माचरण बताया गया है वह नहीं करते; फलस्वरूप श्राद्ध विधिका लाभ उस पूर्वजको नहीं प्राप्त होता है एवं अनिष्ट शक्ति मृत्युके पश्चात् मृत व्यक्तिके लिंगदेहको त्वरित ही बन्धक बना लेती हैं; अतः वर्तमान कालमें कर्मकाण्ड यथासम्भव शास्त्रोक्त पद्धतिसे करना चाहिए और उसे करते समय प्रार्थना एवं नामजपका अधिकसे अधिक जोड देना चाहिए ।
- अनेक बार यदि कोई जीवात्माका आध्यात्मिक स्तर ऊंचा हो और घरमें पितृदोष हो तो पूर्वज गर्भमें उस जीवात्मापर आक्रमण कर उसके मन एवं बुद्धिपर आवरण निर्माण कर उसे कष्ट देने लगते हैं, ऐसे शिशुओंको जन्मसे ही शारीरिक और मानसिक कष्ट होता है और अतृप्त पितरोंद्वारा स्थूल एवं सूक्ष्म देहमें बनाए गए स्थानका लाभ उठाकर सूक्ष्म जगतकी बलाढ्य आसुरी शक्तियां अर्थात् मान्त्रिक ऐसी जीवात्माओंपर नियन्त्रण करने हेतु आक्रमण करते हैं और मृत्यु उपरान्त उनके लिए ऐसे लिंगदेहको बन्धक बनाना अत्यन्त सरल होता है । सूक्ष्म जगतकी आसुरी शक्तियां जितनी सजगता और सतर्कता एवं पूर्व नियोजनके साथ किसी जीवात्माको नियन्त्रित करने हेतु प्रयास करती हैं उतनी सतर्कता आज सामान्य व्यक्तिमें तो क्या अनेक साधकोंमें भी दिखाई नहीं देती है । इससे समझमें आता है कि हिन्दुओंको सूक्ष्म जगतके विषयमें जागरुक करना कितना आवश्यक है । साथ ही योग्य प्रकारसे साधना और सन्तकृपा हेतु प्रयास करना भी उतना ही आवश्यक है; क्योंकि मान्त्रिकोंसे रक्षण अस्सी प्रतिशतसे आगेके आध्यात्मिक स्तरके सन्त अर्थात् सद्गुरु पदपर या उसके आगेके स्तरपर आसीन सन्त ही कर सकते हैं ।
सूक्ष्म जगतकी आसुरी शक्तियां अच्छे स्तरके जीवात्माओंको अपने नियन्त्रणमें करने हेतु अधिक सजग रहती हैं; क्योंकि ऐसी जीवात्माओंके नियन्त्रणमें आनेपर उन्हें कुकृत्योंको करवाने हेतु अधिक शक्तिका अपव्यय नहीं करना पडता है और वे उससे जो भी अनिष्ट कार्य चाहे, वह करवा सकती हैं । तो यह प्रश्न भी उठ सकता है कि क्या वे जीवात्माएं इन आसुरी शक्तियोंसे बचाव हेतु कुछ प्रयास नहीं करती हैं, तो उत्तर यह है कि वे प्रयास तो करती हैं; परन्तु सूक्ष्म जगतमें आसुरी शक्तियां अपनेसे अधिक शक्तिशाली शक्तियोंसे शक्ति मांग कर उस जीवात्माके प्रयासोंपर भारी पडती हैं । वहीं स्तरके अनुरूप अपने इष्टदेवताके प्रति भाव एवं भक्तिके अभावमें या अहंके कारण अच्छे स्तरकी जीवात्माएं सहज ही उनकी बलि चढ जाती हैं । इससे आध्यात्मिक स्तर अनुसार योग्य साधना करनेका महात्म्य समझमें आता है ।
- पचास प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरसे ऊपरकी जीवात्माओंके ऊपर उच्च कोटिके सन्तकी कृपा ही सूक्ष्म जगतकी बलाढ्य आसुरी शक्तियोंसे रक्षण कर सकती हैं । इससे यह भी समझमें आता है कि कलियुगमें अनेक धर्मगुरु जिनके ऊपर सगुण सन्तोंका या उच्च कोटिके देवताका वरद हस्त कभी नहीं रहा, वे सनातन धर्मके विरुद्ध पंथ एवं तथाकथित धर्मकी संस्थापना इतनी सरलतासे करनेमें कैसे सक्षम हो गए । यथार्थमें कलियुगमें पचाससे पैंसठ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरवाले इन अध्यात्मविदोंको सूक्ष्म जगतकी आसुरी शक्तियोंका संरक्षण एवं शक्ति प्राप्त था । – तनुजा ठाकुर
Didi ma fir is prakasr ki pida ka sarltam upaay kya hai jisase pitru bandhan mukts ho aur uttam gati ko prapt ho?….KYA GITA PATH KARNE SE UNKO MUKTI MIL JAYEGEE???
दतात्रेयका जप करें !