नेपाल धर्मयात्राके मध्य भगवान पशुपतिनाथने दी अपने सान्निध्यकी दिव्य अनुभूति


दिनांक १२ सितम्बर २०१३ को जब हम नेपाल धर्मप्रसारकी सेवा हेतु जा रहे थे, तब विमानमें मैं भगवान पशुपतिनाथको अपने दर्शन हेतु वहां बुलानेके लिए कृतज्ञता व्यक्त कर रही थी । विमानसे, हिमालयकी हरी-भरी घाटियों तथा विशाल हिमशिखरोंको देखकर, मन भावविभोर हो रहा था और मैं मन ही मन शिवजीका ध्यान कर रही थी । मैंने शिवजीसे कहा, “आपके पशुपतिनाथ स्वरूपके बारेमें शास्त्रोंमें पढा तो है, आज उसका दर्शनकर जीवन धन्य हो जाएगा ।” ऐसी प्रार्थना करनेपर ऐसा लगा जैसे पशुपतिनाथ भगवानसे सन्देश आया, “मैं भी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं शीघ्र आओ ।” मैं उनके इस प्रेमरूपी सम्भाषणसे आनन्दित होकर ध्यान करने लगी ।
जब नेपाल पहुंची तो वहां उस दिवस किसी कारण कार्यबन्दी (हडताल) थी । मार्गमें कोई वाहन नहीं चल रहा था । जिन्होंने हमें बुलाया था, वे भी सैनिकोंके वाहनसे हमें लेने किसी प्रकारसे आए थे । वे हमें ‘मारवाडी सेवा समिति’ नामक किसी स्थलपर ले जाना चाहते थे । विमानतलके पास खडे कुछ ‘टैक्सी’वालोंने हमें वहांतक ले जाने हेतु, अत्यधिक शुल्क मांगना आरम्भ कर दिया। जिन्होंने हमें आमन्त्रित किया था, वे दो सहस्र नेपाली रुपएमें, हमारे लिए एक ‘टैक्सी’वालेसे बातकर, मारवाडी सेवा समितिमें, हम साधकोंको पहुंचाने हेतु, हमारी सामग्री रखवाने लगे । मैंने जब सुना कि हमें कल पुनः जनकपुर जानेके लिए यहां आना होगा और जहां वे हमें ले जा रहे हैं, वहांपर कोई दर्शनीय स्थल भी नहीं है, न ही वहांसे पशुपतिनाथ मन्दिरके लिए उस दिवस, उस स्थलसे वाहन ही मिल पाएगा और यदि मिलेगा तो उन्हें अत्यधिक शुल्क देना होगा; अतः मैंने उनसे कहा, “इतना अधिक शुल्क देकर इतनी दूर जानेका कोई अर्थ नहीं है । हम यहीं वायुयानतलके पास किसी स्थलपर रुकेंगे, जिससे हमें पशुपतिनाथ मन्दिरमें भी जानेका सौभाग्य मिले ।” और उन्होंने हमें पशुपतिनाथ मन्दिर और विमानतलके निकट एक विश्रान्तिगृहमें रुकवा दिया ।” जब उस विश्रान्तिगृहके कक्षमें पहुंची और खिडकीकी ओर देखा तो पशुपतिनाथ मन्दिरका साक्षात दृश्य दिखाई दे रहा था । कक्ष पांचवें तल्लेपर था; अतः मन्दिरके निकटका भी सुरम्य क्षेत्र दिखाई दे रहा था । मैं वहां पहुंचकर भोलेनाथकी लीला समझ गई । मेरे स्वास्थ्यकी स्थिति, उनसे अच्छी और कौन जान सकता है ? इसलिए मैं उनके पास सम्भवतः प्रतिदिन न भी पहुंच सकूं; परन्तु मुझे उनके मन्दिरकी प्राचीरके दर्शन, जबतक मैं वहां रहूं, तबतक वह मिलते रहें, ऐसा उन्होंने स्वयं नियोजन किया, ऐसा मुझे लगा और यह सब उनकी कृपाके कारण ही सम्भव हुआ था । यदि उस दिवस कार्यबन्दी न होती तो हम उस स्थानपर नहीं रुक पाते और न ही उस दिवस हमें उनके दर्शन हो पाते और न ही उनके क्षेत्रमें रहनेका सौभाग्य मिल पाता । कहते हैं न ‘ईश्वरः यत् करोति शोभनं करोति’ और मैंने पशुपतिनाथ भगवानको अपनी कृतज्ञता व्यक्त की । सन्ध्या समय उनके दर्शन किए । प्रातः जब ब्रह्ममुहूर्तमें साधनाके लिए उठती थी तो कक्षसे सीधे उनके मन्दिरके दर्शन होते और सन्ध्या समय भी वहांका प्रकाश अन्तर्मनको आह्लादित करता था । मुझे विमानमें उनके सूक्ष्म सम्भाषणका अर्थ भी समझमें आ गया । अपने कक्षसे मैंने, उस क्षेत्रके जितने भी चित्र अपने ‘कैमरे’से निकाले, वे सब अति सुन्दर निकले, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी । हम ईश्वरकी भक्ति करें, यह हमारा धर्म है; परन्तु वे जब हम जैसे अधमोंपर अपनी कृपा, इस स्वरूपमें बरसाएं तो उनकी यह लीला शब्दातीत असीम आनन्दकी अनुभूति देती है । – पूज्या तनुजा ठाकुर

 



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution