उच्चतम न्यायालयने अव्यसक महिलाओंके खतनेके लिए मुस्लिम समूहके अधिवक्ताको हडकाया


अगस्त २०, २०१८

उच्चतम न्यायालयने पुनः कहा है कि यह दलील, यह सिद्ध करनेके लिए पर्याप्त नहीं कि दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदायकी अव्यस्क लडकियोंका ‘खतना’ १०वीं शताब्दी से होता आ रहा है; इसलिए यह आवश्यक धार्मिक प्रथाका भाग है, जिस पर न्यायालयद्वारा जांच नहीं की जा सकती ।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्राके नेतृत्व वाली पीठने यह बात एक मुस्लिम समूहकी ओर से प्रस्तुत हुए अधिवक्ता एएम सिंघवीकी दलीलोंका उत्तर देते हुए कही । सिंघवीने अपनी तर्कमें कहा कि यह एक प्राचीन प्रथा है, जो कि आवश्यक धार्मिक प्रथाका भाग है और इसलिए इसकी न्यायिक जांच नहीं हो सकती !

इस पीठमें न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड भी थे । सिंघवीने पीठसे कहा कि यह प्रथा संविधानके अनुच्छेद २५ और २६ के अन्तर्गत संरक्षित है, जो कि धार्मिक स्वतन्त्रतासे सम्बन्धित है ।

यद्यपि पीठने इससे असहमति दिखाई और कहा कि यह तथ्य पर्याप्त नहीं कि यह प्रथा १०वीं शताब्दीसे प्रचलित है; इसलिए यह धार्मिक प्रथाका आवश्यक भाग है । पीठने कहा कि इस प्रथाको संवैधानिक नैतिकतासे गुजरना होगा । इसमें सुनवाई अधूरी रही और इस पर २७ अगस्तसे पुनः सुनवाई होगी ।

इससे पूर्व ३० जुलाईको सुनवाई करते हुए न्यायालयने कहा था कि महिला केवल पतिकी इच्छाके लिए ऐसा क्यों करे ? क्या वे पालतू भेड-बकरियां है ? उसकी भी अपनी पहचान है । न्यायालयने कहा कि ये व्यवस्था भले ही धार्मिक हो; लेकिन प्रथम दृष्टया महिलाओंकी गरिमाके विरूद्ध दिखती है । न्यायालयने यह भी कहा कि प्रश्न यह है कि कोई भी महिलाके जननांगको क्यों छुए ? वैसे भी धार्मिक नियमोंके पालनका अधिकार इस सीमासे बंधा है कि नियम सामाजिक नैतिकता और व्यक्तिगत स्वास्थ्यको हानि पहुंचाने वाला न हो !

मुस्लिम महिलाओंके प्रति इस कुकृत्यकी हम कडी भर्त्सना करते हैं और न्यायालयने इसपर तुरन्त प्रतिबन्ध लगाना चाहिए – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

स्रोत : जी न्यूज



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