सूर्यकी उपासनामें जल अर्थात अर्घ्य क्यों दिया जाता है ?


सूर्योपनिषदके अनुसार, समस्त देव, गन्धर्व, ऋषि भी सूर्य रश्मियोंमें निवास करते हैं । सूर्यकी उपासनाके बिना किसीका कल्याण सम्भव नहीं है, भले ही अमरत्व प्राप्त करनेवाले देव ही क्यों न हों ! स्कन्दपुराणमें कहा गया है कि सूर्यको अर्घ्य दिए बिना भोजन करना, पापके समान है । भारतीय साधना पद्धतिके अनुसार, सूर्योपासना किए बिना कोई भी मानव किसी भी शुभ कर्मका अधिकारी नहीं बन सकता ।

संक्रान्तियों तथा सूर्य षष्ठीके अवसरपर सूर्यकी उपासनाका विशेष विधान बनाया गया है ।

सामान्य विधिके अनुसार, प्रत्येक रविवारको सूर्यकी उपासना की जाती है । प्रतिदिन प्रातःकाल रक्तचन्दनसे मण्डल बनाकर, ताम्बेके लोटेमें (कलशमें) जल, लाल चन्दन, अक्षत (साबुत चावल), लाल पुष्प एवं कुश आदि रखकर, घुटने टेककर, प्रसन्न मनसे सूर्यकी ओर मुख करके कलशको छातीके समक्ष मध्यमें लाकर, सूर्य मन्त्र, गायत्री मन्त्रका जप करते हुए अथवा निम्नलिखित श्लोकका पाठ करते हुए, जलकी धारा धीरे-धीरे प्रवाहितकर, भगवान सूर्यको अर्घ्य देकर पुष्पाञ्जलि अर्पित करनी चाहिए । इस समय यदि दृष्टिको कलशकी धारवाले किनारेपर रखेंगे, तो सूर्यका प्रतिबिम्ब एक छोटे बिन्दुके रूपमें दिखाई देगा । एकाग्र मनसे देखनेपर सप्तरङ्गोंका वलय भी दृष्टिगत होगा, तत्पश्चात परिक्रमा एवं नमस्कार करें !

सिन्दूरवर्णाय सुमण्डलाय नमोऽस्तु वजाभरणाय तुभ्यम् ।

पद्माभनेत्राय सुपंकजाय ब्रह्मेन्द्रनारायणकारणाय ॥

सरक्तचूर्ण ससुबर्णतोयंस्त्रकूकुंकुमाट्यं सकुशं सपुष्पम् ।

प्रदत्तमादायसहेमपात्रं प्रशस्तमर्घ्य भगवन् प्रसीद ॥ – शिवपुराण कैलाश संहिता, ६.३९.४० 

अर्थात सिन्दूर वर्णसे सुन्दर मण्डलवाले, हीरक रत्नादि आभरणोंसे (आभूषणोंसे) अलङ्कृत, कमलनेत्र, हाथमें कमल लिए, ब्रह्मा, विष्णु एवं इंद्रादिके (सम्पूर्ण सृष्टिके) मूल कारण, हे प्रभो ! हे आदित्य ! आपको नमस्कार है । भगवन ! आप सुवर्ण पात्रमें रक्तवर्ण चूर्ण कुमकुम, कुश, पुष्पमालादिसे युक्त, रक्तवर्णिम जलद्वारा दिए गए श्रेष्ठ अर्घ्यको ग्रहणकर प्रसन्न हों ।

उल्लेखनीय है कि इससे भगवान सूर्य प्रसन्न होकर आयु, आरोग्य, धन-धान्य, क्षेत्र, पुत्र, मित्र, तेज, वीर्य, यश, कान्ति, विद्या, वैभव एवं सौभाग्य आदि प्रदान करते हैं तथा सूर्यलोककी प्राप्ति होती है, ऐसा ब्रह्मपुराणमें कहा गया है ।

मानसं वाचिकं वापि कायजं यच्च दुष्कृतम् ।

सर्वसूर्यप्रसादेन तदशेषं व्यपोहति ॥

अर्थात जो उपासक भगवान सूर्यकी उपासना करते हैं, उन्हें मनोवाञ्छित फल प्राप्त होते हैं । उपासकके सम्मुख प्रकट होकर वे उसकी इच्छापूर्ति करते हैं तथा उनकी कृपासे मनुष्यके मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक, सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ।

ऋग्वेदमें, सूर्यसे पापमुक्ति, रोगनाश, दीर्घायु, सुख प्राप्ति, दरिद्रता निवारण आदिके लिए प्रार्थना की गई है । वेदोंमें ओजस, तेजस एवं ब्रह्मवर्चस्वकी प्राप्ति हेतु सूर्यकी उपासना करनेका विधान है ।

ब्रह्मपुराणके अध्याय २९ एवं ३० में सूर्यको सर्वश्रेष्ठ देवता मानते हुए सभी देवोंको इन्हींका प्रकाश स्वरूप बताया गया है तथा कहा गया है कि सूर्यकी उपासना करनेवाले मनुष्य, जो कुछ सामग्री सूर्यके लिए अर्पित करते हैं, भगवान भास्कर, उन्हें लक्ष (लाख) गुना करके लौटा देते हैं ।

स्कन्द पुराण, काशी खण्ड, ९.४५-४८ में सविता-सूर्य आराधनाके द्वारा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष अर्थात चतुर्वर्गकी फल प्राप्तिका वर्णन है । धन, धान्य, आयु, आरोग्य, पुत्र, पशुधन, विविध भोग एवं स्वर्ग आदि भी सूर्यकी उपासना करनेसे प्राप्त होते हैं ।

यजुर्वेद, अध्याय १३, मन्त्र ४३ में कहा गया है कि सूर्य, सविता, मानव मात्रके समस्त शुभ एवं अशुभ कर्मोंके साक्षी हैं; इसलिए भी इनकी आराधना की जानी चाहिए । इनसे हमारा कोई भी कार्य अथवा व्यवहार छुपा नहीं रह सकता ।

अग्निपुराणमें कहा गया है कि गायत्री मन्त्रद्वारा सूर्यकी उपासना-आराधना करनेसे वे प्रसन्न होते हैं तथा साधकका मनोरथ पूर्ण करते हैं ।



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