स्वभावदोष निर्मूलन क्यों करना चाहिए ?


साधकोंने स्वभावदोष निर्मूलन क्यों करना चाहिए ?, इस सम्बन्धमें एक शास्त्र वचन इस प्रकार है – ‘बहूनपि गुणानेक दोषो ग्रसति’  अर्थात एक दोष बहुतसे गुणोंको भी नष्ट कर देता है । साधनाका संचय हो एवं गुण उभरकर आये, इस हेतु स्वभावदोष निर्मूलन अति आवश्यक है ! इसे एक उदाहरणसे समझ लेते हैं, एक व्यक्ति अपने कार्यालयमें सभी कार्योंको उत्कृष्टतासे करता है; किन्तु उसमें ‘समयबद्धता’ ये गुण नहीं है; अतः वह निर्धारित समय सीमापर कार्यको सम्पन्न नहीं करता है तो ‘कार्यको अच्छेसे करना’ उसके इस गुणपर उसका यह दोष हावी हो जाता है ! इसलिए दोष निर्मूलनको महत्त्व देना चाहिए ।



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