१५ अप्रैल, २०२१
देहलीमें हुई एक ‘प्रेस कांफ्रेस’में कई मौलवी सम्मिलित हुए, जो ‘तहरीक’ नामक संस्थासे जुडे हुए थे । उन्होंने कहा, “वो चाहते हैं कि वे ‘गुस्ताखी’ करते रहें और हम सहन करते रहेंगे, कोई अन्तर नहीं पडने वाला । हमने निर्णय किया है कि हम अपने ‘नबी’के आदर और ‘अजमत’के लिए प्रत्येक बलिदान देंगे; इसलिए, इस ‘रमजान-ए-मुबारक’में अपने ‘नबी’की ‘इज्जत’को सुरक्षित करनेके लिए और उनके ‘गुस्ताखों’को दण्ड दिलानेके लिए ‘जेल भरो आन्दोलन’ चलाएंगे ।”
बडी बात यह है कि इस मौलवियोंने कहा कि ऐसा कोई एक ‘गुस्ताख’ नहीं है, वरन ‘गुस्ताखों’की एक पूरी सूची उनके पास है । इस मध्य उन्होंने उन ‘गुस्ताखों’के विषयमें लिखित-पत्र भी दिखाए । मौलवियोंने कहा कि ये तो वो कारावासमें रहें, या हम नहीं रहेंगे । कट्टरवादियोंने कहा कि उनके सिरपर जो गर्दनें हैं, वो उनके ‘नबी’की ‘अजमत’के लिए है । देश भरके मुसलमान इस ‘जेल भरो आन्दोलन’में भाग लेंगे ।
मौलवियोंने कहा कि ‘मुल्क-ए-हिन्दुस्तान’में २०१४ में भाजपा शासन आनेके साथ ही ‘पैगम्बर-ए-इस्लाम’ और ‘अल्लाह’के प्रति ‘गुस्ताखियों’का समय आरम्भ हुआ है । मौलवियोंने कहा कि ‘वोटों’के ध्रुवीकरण और हिन्दू-मुसलमानको विभाजित करनेके लिए ये सब हो रहा है । उन्होंने कहा कि वे सब कुछ सहन कर सकते हैं; परन्तु ‘नबी’की ‘इज्जत’से ‘खिलवाड’ नहीं । अब या तो हम रहेंगे या ‘गुस्ताख’ ।
‘नबी’का मान तब कहां जाता है, जब मुसलमान लवजिहाद, रेपजिहाद करते हैं, मन्दिरोंको तोडकर आग लगाते हैं, अपने ही समाजकी महिलाओंको पांवकी ‘जूती’ समझकर ‘तीन तलाक’ व ‘हलाला’के पाखण्डमें उन्हें पीसते हैं । क्या तब ‘नबी’ कुछ नहीं कहते ? या उनका अनादर नहीं होता ? जब ईश्वरको माननेवाले कथित धार्मिक लोग ईश्वरकी चिन्तामें ‘गर्दनें’ उडानेकी बात करने लगे और उन्हीं आदरकी बातोंको स्वयंपर क्रियान्वित न करें, तो समझना चाहिए कि वे धर्म नहीं, वरन पाखण्डपर चल रहे हैं और ये ‘नबी’के रक्षक उन्हींमेंसे एक है । इनकी इसी रक्षाके कारण आज भारत नरक समान बन गया है । ऐसे विषैले मौलवी यदि इस धरापर न ही रहे, तो ही देशके हितमें होगा । भारत शासन श्रीलंकासे सीख ले और इससे पूर्व ये विषैले लोग अपना विष फैलाए, इन्हें बन्दी बनाए और उपद्रव फैलानेके प्रयासमें दण्डित करे ! – सम्पादक, वैदिक उपाासना पीठ
स्रोत : ऑप इंडिया
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