जनवरी ९, २०१९
तमिलनाडु शासनको झटका देते हुए मद्रास उच्च न्यायालयने बुधवार, ९ जनवरीको उस योजनापर रोक लगा दी, जिसमें राज्यके सभी राशनकार्ड धारकोंको पोंगल उपहारके रूपमें एक सहस्र रुपये नकद वितरित किए जाने थे । न्यायालयने राज्य शासनको निर्धनता रेखासे निम्नकी श्रेणीमें नहीं आनेवाले लोगोंको धन देनेसे रोक भी दिया । न्यायमूर्ति एम सत्यनारायणन और न्यायमूर्ति पी राजामणिकमकी खण्डपीठने सामाजिक कार्यकर्ता जेडेनियल जेसूदासकी याचिकापर अन्तरिम आदेश पारित किया । इस याचिकामें सभी राशनकार्ड धारकोंको उनकी वित्तीय स्थितिपर ध्यान किये बिना उपहार देनेके शासनके निर्णयको चुनौती दी गई है । पीठने प्रश्न किया, ‘‘आप सभी राशनकार्ड धारकोंको एक सहस्र रुपये देकर इसे नीतिगत निर्णय कैसे कह सकते हैं ?’’ न्यायालयने कहा कि यह धन शासकीय है, सत्तारूढ दलका नहीं । यदि निर्धनता रेखासे निम्नके लोगोंको पोंगल उपहार दिये जाते हैं तो इसे समझा जा सकता है और यह अनुचित नहीं है; परन्तु सभी राशनकार्ड धारकोंको एक सहस्र रुपये देनेके पीछे क्या मंशा है । वह पहलेसे ही बडा वित्तीय भार झेल रही है और इससे राज्य शासन पर भार और बढेगा ।’’ न्यायालयने प्रश्न किया कि उच्च न्यायालयके न्यायाधीशों और तमिलनाडुके महाधिवक्ताको शासनसे एक सहस्र रुपयेके पोंगल उपहारकी आवश्यकता क्यों है ? उल्लेखनीय है कि मुख्यमन्त्रीके पलानीस्वामीने पांच जनवरीको यहां एक समारोहमें दस लाभार्थियोंको एक-एक सहस्र रुपये देकर इस योजनाका आरम्भ किया था ।
“राजनीतिक लाभ लेने हेतु राजनेता शासकीय कोष व्यर्थ करते हैं, ऐसेमें न्यायालयका यह निर्णय प्रशंसनीय है; परन्तु न्यायालय इसके साथ-साथ तमिलनाडुमें धर्म परिवर्तनके लिए मिशनरियोंद्वारा दिए जानेवाले सहस्रों कोटिके अवैध धनपर भी रोक लगाए एवं उसे राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषितकर राज्यके विकासमें प्रयोग करें, ऐसी सभी राष्ट्रवादियोंकी उनसे अपेक्षा है”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : नभाटा
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