नवम्बर १, २०१८
अब दिव्यांग और मानसिक रूपसे दुर्बल व्यक्ति भी हज कर सकेंगें । उच्चतम न्यायालयके हस्तक्षेपके पश्चात् केन्द्र सरकारने नूतन हज नीतिमें परिवर्तन कर उस प्रावधानको हटा दिया है, जिसके अन्तर्गत दिव्यांगों और मानसिक रूपसे दुर्बल व्यक्तिको हजपर जानेसे प्रतिबन्ध लगा दिया गया था । केन्द्र सरकारने गुरुवार, १ नवम्बरको नूतन हज नीतिमें परिवर्तन किए जानेके बारेमें हाईउच्च न्यायालयको जानकारी दी ।
मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन और आईएस मेहताकी पीठके समक्ष सरकारने कहा है कि हज समितिने नूतन नीतिमें परिवर्तनको सहमतिसे स्वीकृति दे दी है । सरकारकी ओरसे अधिवक्ता अजय दिगपॉलने पीठको बताया कि अब दिव्यांग और मानसिक रूपसे दुर्बल व्यक्ति भी हजपर जानेके लिए सामान्य श्रेणीमें आवेदन कर सकते हैं । उन्होंने कहा कि ऐसे लोगोंको इसपर आने वाला व्यय स्वयं वहन करना होगा । यद्यपि अधिवक्ताने स्पष्ट किया कि गम्भीर रोग जैसे कर्करोग (कैंसर), टीबी, वृक रोग (किडनी), संक्रमण व श्वास व हृदय रोगसे पीडित व्यक्तिको हजपर जानेकी अनुमति नहीं होगी । केन्द्र सरकारने २०१८-२२ के लिए जारी हज नीतिमें परिवर्तनको लेकर न्यायालयमें ‘हलफनामा’ भी प्रविष्ट किया है ।
सरकारने यह दिव्यांगों व मानसिक रूपसे दुर्बल व्यक्तिको हज नहीं जाने देनेके प्रावधानोंको चुनौती देनेके लिए अधिवक्ता गौरव कुमार बंसलद्वारा प्रविष्ट जनहित याचिकापर दिया है । इससे पूर्व केन्द्र सरकारने कहा था कि दिव्यांग और मानसिक रूपसे दुर्बल व्यक्ति भी हजपर जानेकी अनुमति नहीं दी जा सकती । इसपर न्यायालयने सरकारको आडे हाथ लेते हुए केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालयके सचिवको ‘तलब’ किया था ।
साथ ही पीठने हज समितिके मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रस्तुत नहीं होते हैं तो उनके विरुद्घ कडी कार्यवाही की जाएगी । सरकारने न्यायालयमें कहा था कि दिव्यांगोंको हजके लिए जानेकी अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इस प्रकारके कुछ लोग (दिव्यांग) वहां जाकर भिक्षावृतिमें संलिप्त हो जाते हैं, जबकि साउदी अरबमें भीख मांगना प्रतिबन्धित है । मन्त्रालयने कहा था कि कुरानके अनुसार सभी मुस्लिमोंके लिए हज करना अनिवार्य नहीं है । सरकारने यह भी कहा था कि कुरानके अनुसार केवल आर्थिक और शारीरिक रूपसे सशक्त लोगोंके लिए हज करना अनिवार्य है ।
अधिवक्ता बंसलने नूतन हज नीतिको लेकर, जिसमें अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालयद्वारा गठित समितिके विवरणके पश्चात् शासनने शारीरिक और मानसिक रूपसे दिव्यांग लोगोंको हजका आवेदन करनेपर प्रतिबन्ध लगा दिया था, इस निर्णयको बंसल ने न्यायालयमें चुनौती दी है । उन्होंने पीठको बताया है कि दिव्यांग लोगोंको हज जानेसे रोकना किसी धर्मका पालन करनेकी समानता एवं स्वतन्त्रतासे सम्बन्धित संविधानके अनुच्छेद १४, २१ और २५ का उल्लंघन है ।
“सम्भवतः संविधानके सभी अनुच्छेद व धाराएं तथाकथित अल्पसंख्यकोंका ही अनुमोदन करते हैं व हिन्दुओंका सदैव विरोध ! गत दिवसोंके प्रकरणसे यही स्पष्ट होता है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : लाइव हिन्दुस्तान
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