अप्रैल १८, २०१९
धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित ठेकेदार फ्लाइट, बसों और ट्रेनों में बैठकर नमाज़ पढ़ना चाहते हैं लेकिन दूसरी तरफ़ अन्य धर्मों, सम्प्रदायों और संस्कृतियों को अपने पाँव के धूल के बराबर नहीं समझते। ऐसा ही मामला तुफैल अहमद का है। उन्हें माँ सरस्वती या हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में कितना पता है, ये हमें नहीं पता। लेकिन, उनके ताज़ा ट्वीट से इतना तो पता लग ही गया है कि उन्हें भारत, भारतीय इतिहास और संस्कृति की समझ तो नहीं ही है। ऐसे लोगों के ज्ञान चक्षु खोलने के एक ही तरीका है, इन्हें तर्क-रूपी जूता सूंघा कर असली तथ्यों से परिचित कराया जाए।
हिन्दू धर्मको हिंसक सिद्ध करनेके कुटिल प्रयासमें
‘फर्स्टपोस्ट’में लिखे एक लेखमें तुफैल अहमदने यह सिद्ध करनेका प्रयास किया कि हिन्दुओंद्वारा मुस्लिम आक्रांताओंपर लगाए गए आरोप झूठे हैं । बर्बर इस्लामी आक्रांताओंके लिए बलात धर्मान्तरण कराना और मंदिरोंको तोड डालना साधारण बातें थी, यह बात किसीसे छिपी नहीं है; परन्तु तुफैलने इन बातोंको झूठ सिद्ध करनेके लिए लम्बा-चौडा लेख तो लिखा; परन्तु जब ‘ट्विटर’पर लोगोंने उन्हें ‘शांतिप्रिय समुदाय’के कृत्योंके बारेमें परामर्श मांगा तो वो बौखला गए । आपा खो बैठे तुफैलने तुरन्त हिन्दुत्वपर प्रश्न पूछ डाला कि अन्ततः कौनसे शांतिप्रिय धर्ममें देवी-देवताओंको शस्त्रोंके साथ दिखाया गया है, केवल सरस्वतीके ? यहां उन्होंने दो बडी चूक कीं । पहली, तुफैलने हिन्दू देवी-देवताओंद्वारा धारण किए गए अस्त्र-शस्त्रोंको हिंसासे जोडकर देखा । दूसरी, उन्होंने मां सरस्वतीके बारेमें बिना तथ्य जाने झूठ बोला ।
पहली बात तो यह कि देवी-देवताओंको अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित दिखानेका अर्थ यह हुआ कि किसीको भी बुराई या दुष्टोंसे लडनेके लिए सदैव सज्ज रहना चाहिए । वेदों व पुराणोंमें दिव्यास्त्रोंसे लेकर सभी प्राचीन शस्त्रोंका विवरण है; परन्तु कहीं भी ऐसा प्रसंग नहीं है, जहां उनका अनुचित प्रयोग करके समाजमें भय उत्पन्न किया गया हो । समस्याएं तब आती हैं जब राक्षसों व दुष्टोंद्वारा समाजका उत्पीडन किया जाता है और ऐसे ही अवसरपर देवताओं व देवियोंद्वारा समय-समयपर अपने अस्त्र-शस्त्रोंका प्रयोगकर बुराईका संहार किया गया है ।
तुफैल अहमदने हिन्दुत्वका एक ही पक्ष देखकर भद्दा, झूठा और अपमानजनक बात कर तो दी; परन्तु वो इसके दूसरे पक्षोंको नहीं देख पाए । द्वारकाधीश श्रीकृष्ण यदि सबसे धारदार अस्त्र सुदर्शन चक्र धारण करते हैं तो दूसरी ओर वो बांसुरी बजाते हुए जीव-जंतुओंको प्रसन्न करते हुए भी दिखते हैं । जहां भगवान शिव रौद्र रूपमें त्रिशूलके साथ बुराईके संहारको तत्पर दिखते हैं तो वहीं दूसरी ओर डमरू बजाकर नृत्य करते हुए संगीतकी महत्ताका उद्घोष भी करते हैं ।
तुफैल अहमदने जानबूझकर हिन्दू देवी-देवताओंके एक ऐसे पक्षको हिंसासे जोडकर अनुचित ढंगसे प्रस्तुत करना चाहा, जिसका वास्तविक सन्देश शांति और बुराईके संहारसे जुडा है । समीक्षा, व्याख्या और विश्लेषणका स्वागत तभी तक है, जब तक वो झूठको प्रचारित करते हुए संवेदनाओंपर चोट करनेका घृणित कार्य न करे । तुफैलने अपना योजना चलानेके लिए, हिन्दुत्वको इस्लामिक आतंकवादकी भांति सिद्ध करनेके असफल प्रयासमें झूठ बोला, अनुचित व्याख्या की और संवेदनाओंको कुचल दिया ।
https://twitter.com/TrueIndology/status/1118610233834622976/
अब तुफैलके दूसरे झूठपर आते हैं, जिसमें उन्होंने मां सरस्वतीका वर्णन कर, उन्हें शेष देवी-देवताओंसे भिन्न केवल इसीलिए रखा है; क्योंकि उनके हिसाबसे वो शस्त्र नहीं धारण करतीं । इसे ‘बन्दर बैलेसनिंग’ कह सकते हैं । एक ओर तो उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओंको हिंसक दिखाना चाहा और दूसरी ओर सरस्वतीको अच्छा दिखाकर यह भी सिद्ध करनेका प्रयास किया कि वो अध्ययनके आधारपर ये बातें बोल रहे हैं; परन्तु तुफैलको जानना पडेगा कि मां सरस्वतीके हाथोंमें भी शस्त्र होते हैं, और ऐसा चित्रित भी किया गया है । यदि उन्होंने दो-चार मन्दिरोंका भ्रमण करके या फिर कुछ अच्छी पुस्तकें पढकर बोला होता तो सम्भवतः ऐसा नहीं बोलते । आइए देखते हैं कि कैसे तुफैलने झूठ बोला ताकि हिन्दू धर्मको अहिंसक सिद्ध किया जा सके ।
कर्नाटकके हालेबिंदुमें एक शिव मंदिर है, जिसका नाम है होयसलेश्वर मंदिर । राजा विष्णुवर्धनके कालमें निर्मित इस मंदिरको पहले तो अलाउद्दीन खिलजीकी सेनाने नष्ट कर दिया और बादमें मोहम्मद बिन तुगलकने यहां विनाश किया था । हिन्दू राजाओंके प्रयासोंसे इसे प्रत्येक बार एक नूतन रूप दिया गया । यहां मां सरस्वतीकी प्रतिमा ‘नाट्य सरस्वती’ के रूपमें स्थित है ।
इसीप्रकार होसहोलालुके लक्ष्मीनारायण मंदिरमें भी मां सरस्वतीको अस्त्र-शस्त्रोंके साथ दिखाया गया है । इससे यह तो सिद्ध हो जाता है कि तुफैलने कभी सर उठाकर मंदिरोंकी ओर देखा तक नहीं, तभी उन्हें झूठ और असत्यके आधारपर लिखना पड रहा है । ऋग्वेद ६.६१ के सातवें श्लोकको देखें तो वह इस प्रकार है:
“उत सया नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः ।
वर्त्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम ।।”
जैसा कि आप देख सकते हैं, यहां सरस्वतीको ‘घोरा’ कहा गया है । इस श्लोकका भावार्थ करें तो यहां मां सरस्वतीको दुष्टोंका संहारक कहा गया है । कुल मिलाकर देखें तो जहां एक ओर मां सरस्वतीको पुस्तक और वीणाके साथ दिखाया गया है, वहीं दूसरी ओर बुराई व दुष्टताका संहारके लिए उनके पास अस्त्र-शस्त्र भी है ।
“जहां एक ओर इस्लामिक मानसिकतासे पीडित तुफैल जैसे धर्मान्ध, हिन्दू धर्मको नीचा दिखानेके लिए निरर्थक बातें लिखते हैं और धर्महीन हिन्दू मौन होकर सुनते हैं, वहीं दूसरी ओर जिसप्रकार ऑप इण्डियाने तुसैनकी विषकारी मानसिकताको उजागर किया है, इसके लिए वे निश्चय ही अभिनन्दनके पात्र हैं । यदि सभी समाचार माध्यम ऐसी सुलझी हुई पत्रकारिता कर पाते तो आज धर्मके विषयमें इतनी भ्रान्तियां न निर्मित होतीं । मां सरस्वतीका वर्णन करनेवाला सबसे बडा ग्रन्थ दुर्गासप्तशती है, जिसमें मां सरस्ववतीका वर्णन है कि किसप्रकार वे दानवोंका संहार करती हैं और यह सिद्ध करती हैं कि शस्त्र और शास्त्र दोनों ही अति आवश्यक है; अन्यथा परिणाम वही होता है, जो मुगल आक्रान्ताओंने भारतका किया । आज धर्महीन हिन्दुओंको बहकाना कितना सरल है, यह हम देख ही सकते हैं, ऐसेमें धर्म सीखना और सीखाना कितना आवश्यक हो गया है, इसका बोध होता है ।”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : ऑप इण्डिया
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