उपासनाका गुरुकुल कैसा होगा ? (भाग – १४)


 उपासनाके गुरुकुलमें गोशाला अवश्य होगी । इसलिए हम गुरुकुल आरम्भ करनेसे पूर्व गोशाला आरम्भ कर चुके हैं । इस गुरुकुलके विद्यार्थियोंको बाल्यकालसे गोसेवा सिखाई जाएगी । गोमाता, हमारी संस्कृतिका मुख्य आधार, प्राचीन कालसे ही रही है; किन्तु अधिकांश हिन्दुओंमें गोमाताके प्रति थोडी श्रद्धा तो है; किन्तु सेवाभाव नहीं है । इसकारण आज भारतमें अनेक गोशालाओंकी स्थिति अत्यन्त दयनीय है, यह किसीसे छुपा हुआ नहीं है और जो लोग गोशाला चलाते हैं, उनके लिए निष्ठा व निष्काम भावसे गोसेवा करनेवाले कार्यकर्ताओंकी कमी, बहुत विकट समस्या उत्पन्न करती है । मैंने देखा है कि अनेक लोग गोशाला जाते हैं, गोमाताके दर्शन करते हैं, उन्हें चारा भी खिलाते हैं, दान भी देते हैं; किन्तु गोसेवा सेवा नहीं करते हैं । दुःखकी बात यह है कि आज तो गांवोंमें भी गोसेवा हेतु कार्यकर्ता नहीं मिलते हैं ।
   मैं आपको उपासनाके आश्रमका ही उदाहरण देती हूं । हमारी दो गोमाताएं शीघ्र ही जननेवाली हैं तो मैंने आश्रमकी साधिकाओंको उन्हें दलिया कण्डेपर पकाकर देने हेतु कहा । इससे आगामी आपताकाल हेतु उनकी पूर्वसिद्धता भी हो जाएगी और गोमाताके गोबरसे उत्पन्न ईंधनसे हमारा धन भी बचेगा । जबसे गोवंश हमारे आश्रममें आया है, तबसे हमने नियमित थोडे उपले (कण्डे) बनवाने आरम्भ कर दिए थे । पिछले माह हमारा गोसेवक अकस्मात मद्यपान करने लगा तो मैंने उसे निकाल दिया और दूसरे गोसेवकको रखा । कुछ दिवसोंसे मैंने देखा कि नूतन उपले नहीं बन रहे हैं; अतः मैंने गोसेवकसे इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि उसे उपले बनाना नहीं आता है, जबकि उसके घरमें भी गोमाता है । मैंने दो और श्रमिक स्त्रियोंसे कहा आप मात्र प्रतिदिन चार उपले बना दिया करें तो वे भी कहने लगीं कि हमें उपले बनाना नहीं आता है, मैं समझ गई सब झूठ बोल रहे हैं । मैंने कहा “कल आप सबको मैं उपले बनाना सिखाउंगी ।” उन्होंने आश्चर्यसे कहा है, “ आपको उपले बनाना आता है ? “ मैंने कहा, “हां आता है, हमारे घरमें गोमाता थी और ग्रीष्मकी ऋतुके अवकाशके समय, हम सब भाई-बहन खेल-खेलमें, कभी-कभी गोसेवककी या हमारी माताजीकी सहायता हेतु उपले बनाते थे । इसे बनानेमें क्या है ? नूतन (ताजे) गोबरमें थोडा पानी मिलाकर सूखा भूसा मिलाकर उसे थाप देना है ।” वे सब लज्जित हो गए; किन्तु मैंने यहीं उन्हें छोडा नहीं, आश्रममें एक साधिका हैं, उन्होंने कहा, “आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, आप रहने दें ! मैं इन्हें सिखा दूंगी, मेरे घर भी कभी गायें हुआ करती थीं और मैं भी उपले बनाती थी ।” और उन्होंने उन्हें यह सिखाया । मैं यह क्यों बता रही हूं; क्योंकि यह अकर्मण्यता आज मात्र नगरके रहनेवाले हिन्दुओंमें ही नहीं गांवोंमें भी है । अर्थात सभीको दूध चाहिए; किन्तु गोबर और गोमूत्रको वे स्पर्श नहीं करना चाहते हैं और आलस्य तो आज अपने चरमपर है; इसलिए हिन्दू राष्ट्रमें सभी गुरुकुलोंमें या विद्यालयोंमें गोशालाका होना अनिवार्य होगा और उसकी सेवा, वहांके शिक्षक और विद्यार्थी ही करेंगे । साथ ही सभी देवालयोंमें एवं नगरोंके प्रत्येक वसतिगृहोंमें (कॉलोनीमें) गोशालाका होना अनिवार्य होगा । हिन्दू राष्ट्रमें एक भी गोवंशका एक बूंद भी रक्त नहीं बहेगा । कहीं भी गोवंशकी अवहलेना होनेपर उन्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा; किन्तु मात्र दण्डके विधानसे गोमाताकी स्थिति नहीं सुधरेगी, इस हेतु सभीमें गोसेवाका संस्कार डालना होगा और यह कार्य गुरुकुल (विद्यालय), देवालय एवं गोशालाएं करेंगी । गोशालासे दूध लेने हेतु अपनी क्षमता अनुसार गोसेवा करना अनिवार्य होगा; अन्यथा दूध नहीं मिलेगा । जी हां ! यहांकी प्रजाको कठोर विधान बनाकर ही सुधारा जा सकता है और हिन्दू राष्ट्रमें अहिन्दुओंका तुष्टिकरण नहीं किया जाएगा; इसलिए गोवंशकी हत्या करनेवाला एक भी ‘पशुवधगृह’ नहीं होगा । आप सोच रहे होंगे कि मैं यह सब इतने निश्चयके साथ कैसे कह सकती हूं ? वो इसलिए कि उस समय निधर्मी चुनाव प्रणाली या अहिन्दुओंका तुष्टिकरण करनेवाले राजनेता नहीं होंगे । मात्र कर्तव्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ एवं राष्ट्रनिष्ठ साधकोंको ही राज्यकी सत्ता दी जाएगी । सन्त योग्य साधकोंको राष्ट्रके उत्तरदायी पदोंपर नियुक्त करेंगे; इसलिए सर्व निर्णय समाज हित व हिन्दू हितमें लिए जाएंगे । आपको यह सब अभीसे इसलिए बता रही हूं; क्योंकि आप भी अपनी मानसिक सिद्धता अभीसे कर लें ! इसलिए उपासनाके गुरुकुलमें गोसेवा, गोसंवर्धन एवं जैविक खेती, जिसका आधार गोवंश ही है, वे सब विधाएं सिखाई जाएंगी ।


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