उपासनाका गुरुकुल कैसा होगा ? (भाग-४)
उपासनाके गुरुकुलमें प्राथमिक स्तरकी शिक्षासे लेकर विश्वविद्यालयीन शिक्षातक यदि कोई विषय अनिवार्य होगा तो वह है संस्कृत भाषा एवं उसका व्याकरण ! आपको तो ज्ञात ही होगा कि संस्कृतका व्याकरण एक महासागर है और यह सत्य है कि यह बहुत गूढ है; किन्तु यदि उसे सूत्रबद्ध रीतिसे पढाया जाए तो यह सरल और रोचक हो जाता है !
उपासनाके गुरुकुलमें संस्कृत व्याकरणको प्रथम मौखिक रूपसे एवं आगेकी कक्षामें लिखित रूपमें पढाया जाएगा | चाहे कोई विद्यार्थी उच्च शिक्षा किसी विषय विशेषमें करना चाहे या नहीं; किन्तु संस्कृत वर्गमें वह जबतक गुरुकुलमें शिक्षा ग्रहण करेगा उसकी उपस्थिति अनिवार्य होगी ! आप पूछेंगे, ऐसा क्यों ? वस्तुत: हमारे देशकी अपार ज्ञान सम्पदा इसी भाषाके ग्रंथोंमें हैं जिससे धूर्त और नीच अंग्रेजोंने एक षड्यंत्र अंतर्गत हमसे दूर कर दिया है एवं उसके पश्चात हिन्दुद्रोही कांग्रेसने उस परम्पराको आगे बढाकर आज यह स्थिति निर्माण कर दी है कि जो कभी हमारी मातृभाषा सामान प्रिय होती थी उससे सभीको भय लगने लगा है ! उस भयको भगाने हेतु इस भाषासे हमारे परिचयको प्रगाढ करना होगा ! सत्य तो यह है कि चाहे कोई भी क्षेत्रका चयन करे उसके लिए संस्कृतके ये ग्रन्थ अवश्य ही मार्गदर्शक सिद्ध होता है एवं सतत होगा |
आपको तो ज्ञात ही होगा कि आधुनिक विज्ञानका मूल तत्त्व संस्कृत ग्रन्थसे ही लिए गए हैं ! यहां तक कि संगणकका मूल वैदिक गणित है ! आज विदेशमें अनके अहिंदू बुद्धिजीवी सस्न्कृत ग्रंथोंका अध्ययन कर कुछ तो नूतन अविष्कार कर रहे हैं तो कुछ प्राचीन विधाओंको पुनर्जीवित कर रहे हैं !
अब तो नासा भी संस्कृतके महत्त्वको मान चुका है तो जब उनके वैज्ञानिक सस्न्कृत पढते हैं तो हम क्यों नहीं इसे सीखें !
संस्कृत सीखनेके शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक लाभ भी हैं ! जो हम पूर्वके लेखोंमें बता ही चुके हैं ! इसलिए उपासनाके गुरुकुलमें संस्कृत ग्रंथोंका एक विशाल वाचनालय भी होगा जिसमें सभी विषयोंके अर्वाचीन एवं प्राचीन दोनों ग्रंथोंका संग्रह होगा !
किसी भी विषयको उसके मूल भाषामें सीखना अधिक सरल होता है | साथ ही कोई भी भाषांतरकर उस ग्रन्थको अपनी भाषामें लिखते समय उसे अपनी बौद्धिक क्षमता अनुसार ही उसका विश्लेषण कर भाषांतर करता है; इसलिए हमारी इच्छा है कि भारतके सभी लोग इस भाषामें मात्र बोलना ही नहीं सीखे अपितु उस ग्रंथोंका अभ्यास भी करना आरम्भ करें एवं उमें निहित जीवनोपयोगी बातोंको आत्मसात कर अपना जीवन धन्य करें !
पूर्वकालमें बच्चे अपने पितासे संस्कृत व्याकरण सीखकर गुरुकुल जाते थे हमें उसकी कालकी पुनरावृत्ति करनी है !
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