उपासनाका गुरुकुल कैसा होगा ? (भाग-६)


 जैसे उपासनाके गुरुकुलमें संस्कृत भाषा सीखना अनिवार्य होगा, वैसे ही दोष निर्मूलन एवं अहं निर्मूलनका पाठ्यक्रम भी अनिवार्य होगा ! कलियुगमें दोष और अहम् अधिक होनेके कारण सामान्य मनुष्यका व्यष्टि एवं समष्टि जीवनमें अनेकानेक समस्याएं निर्माण होती हैं जिसका समाधान न होनेपर वह स्वयं भी त्रस्त रहता है एवं अन्योंको भी उसके कारण कष्ट होते हैं ! इसलिए दोष और अहं निर्मूलनकी प्रक्रिया सीखाना अनिवार्य करना होगा | इस सम्बन्धमें सनातन संस्थाके ग्रन्थ, पाठ्यक्रमके अंग होंगे |
 विद्यार्थियोंने दोष निर्मूलन क्यों करना चाहिए ?, इस सम्बन्धमें विस्तृत लेख पंचागके साथ प्रकाशित होनेवाले लेखोंमें पहले भी प्रकाशित हो चुके हैं ! और हम इसे पुनः एक बार कुछ समयमें प्रकाशित करेंगे |
 दोष निर्मूलन और अहं निर्मूलन करनेसे समाजमें स्वतः ही गुण संवर्धन होगा एवं समाजमें नैतिकताके वृद्धि होगी और हिन्दू राष्ट्रमें जब सभी साधना करेंगे तो इस प्रक्रियासे सभीकी साधनाको गति मिलेगी !
 यह प्रक्रिया जब तक कोई साधक विद्यार्थी सन्तपदको प्राप्त नहीं होता तबतक यह नियमित करना अनिवार्य होगा ! वस्तुत: वातावरण व भोजन  सात्त्विक होनेसे व बाल्यकालसे ही साधना करनेके कारण सबकी वृत्ति अंतर्मुखी हो जाएगी इसलिए वे भी इस प्रक्रियाको सहज ही करेंगे |


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