उपासनाके आश्रमके ध्यान कक्षमें निर्गुण तत्त्व जाग्रत होनेके प्रमाण प्रत्यक्षमें मिलने लगे हैं !
जब हम २०१८ के चैत्र शुक्ल प्रतिपदाके दिवस उपासनाके नूतन आश्रममें निर्माण कार्य हेतु भूमि पूजनकर रहे थे तो आपको बताया ही था कि गुरुपूजनके समय जैसे ही हमने हमारे श्रीगुरु एवं बाबाका ध्यान किया, वैसे ही बाबा व हमारे श्रीगुरुके साथ ही परशुराम भगवानका भी आगमन हुआ था । उनके इस आगमनकी मैंने कल्पना नहीं की थी । यद्यपि मैं हमारे आश्रम परिसरके निकट स्थित भगवान परशुरामके जन्मस्थल जमदग्नि आश्रममें जाकर, उन्हें अपने आश्रमके भूमिपूजन हेतु पधारनेका निमन्त्रण देकर आई थी; किन्तु वे इस प्रकार सूक्ष्मसे गुरुपूजनके समय आ जाएंगे, इसकी कल्पना नहीं की थी; किन्तु उन्हें देखते ही मेरे नेत्रोंसे भावाश्रु बहने लगे; क्योंकि इतनी कृपाकी मैंने अपेक्षा नहीं की थी । भूमिपूजन समाप्त होनेपर उन्होंने कहा, “मैं ऊपर नहीं तुम्हारे पास रहूंगा, यहां इस आश्रममें । ” आश्रमका निर्माण कार्य आरम्भ करानेपर सर्वप्रथम मैंने, उनके इस आदेशके अनुसार, उनके और हमारे श्रीगुरुके लिए एक छोटासा कक्ष बनवाया है, जिसे हम ध्यान कक्ष कहते हैं (जाग्रत भवमें हम शीघ्र ही इसका ‘वीडियो’ भेजेंगे) उसमें हमने एक मंचक (पलंग) भी रखा है, जिससे वे जब चाहे तब आकर विश्राम भीकर सकते हैं ।
एक दिवस इस वर्षके फरवरी माहमें, मैं जब कक्षमें गई तो भान हुआ कि वहां निर्गुण तत्त्व जाग्रत हो गया है; क्योंकि वहां एक सन्त श्रीचेतनदासबाबा कुछ दिवस रहे थे एवं उनके जानेके कुछ दिवस पश्चात ही यह निर्गुण तत्त्व जाग्रत हुआ । इतने अल्प समयमें निर्गुण तत्त्वका क्रियाशील होना, यह मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था ! मैंने साधकोंको इसके विषयमें बताया । इस घटनाके तीन चार दिवस पश्चात ही कुछ अतिथि आश्रममें आए थे और जब हम उन्हें आश्रम दिखा रहे थे तो उन्हें ध्यान कक्षमें भी ले गए । उस समयतक ‘गर्मी’ बढ चुकी थी और वे अतिथि मध्याह्न तीन बजे जब उस कक्षमें गए तो सभीको उस कक्षमें जाकर बहुत अच्छा लगा और एक अतिथि जो किसी गुरुको मानते हैं उन्होंने कहा कि यहां इस कक्षमें कितनी शीतलता है जबकि इसके ऊपर कुछ भी बना हुआ नहीं है और बाहर ‘बहुत ‘गर्मी’ है । वस्तुतः शीतलता, निर्गुण तत्त्वका प्रतीक है और इसकी प्रतीति एक साधकको इतनी सहज हुई, इससे सिद्ध हुआ कि मुझे जो ज्ञात हुआ था कि निर्गुण तत्त्व जाग्रत हो गया है, उसकी प्रतीति सहज ही साधकोंको होने लगी है ।
१७ मार्चको आश्रममें एक साधकका भाई आया था जिसे तीव्र स्तरका शारीरिक व आध्यात्मिक कष्ट है । उस साधकके अनुसार उसमें अनिष्ट शक्तियां प्रकट भी होती थीं एवं पिछले तीन वर्षोंसे उसकी कष्टकी तीव्रता दिन प्रतिदिन बढती चली गई । वह और उसका परिवार सभी प्रकारके चिकित्सकीय एवं आध्यात्मिक उपाय करके थक चुका था; किन्तु कुछ भी परिणाम नहीं मिला था । उसे कफकी अत्यधिक समस्या थी और साथ ही अन्य समस्याएं थीं । वह प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाकी सिद्धताकर रहा है; इसलिए मैंने उससे कहा कि वह ध्यान कक्षमें ही बैठकर अपनी पढाई करे और मात्र तीसरे दिवससे ही उसकी ८०% शारीरिक समस्या, जो विशेषकर कफसे सम्बन्धित थी, वह समाप्त हो गई तथा जो पिछले दो वर्षसे तले हुए पदार्थ, दही इत्यादि वह किंचित भी नहीं खाता था, वह आश्रममें सब कुछ खाने लगा । यह होता है निर्गुण तत्त्वका प्रभाव !
ये अनुभूतियां आपको इसलिए बताती हूं; क्योंकि सूक्ष्मसे जो तथ्य मुझे ज्ञात होते हैं, उनपर आजके तथाकथित बुद्धिजीवियोंको विश्वास नहीं होता है; इसलिए ईश्वरको भी अनुभूति देनी पडती है ।
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