उपासनाके आश्रमके निर्माण कार्यके मध्य मिले सीखने योग्य तथ्य (भाग – ५)


उपासनाके आश्रमकी भूमिमें नवम्बर २०१८ से ही कुछ न कुछ हम उगा रहे हैं, जैसे अभी तक चने, मूंगफली, अरहर(तुअर), गायोंके लिए हरा चारा एवं कुछ शाक लगा चुके हैं | मुझे बागवानी करना बहुत प्रिय है इसका कारण है कि हम बाल्यकालसे जिस घरमें रहते थे वहां एक छोटीसी चार बीघाकी वाटिका हुआ करती थी और हमारे पिताजी उसमें सब फल-फूल, हल्दी, शाक इत्यादि सब उगाते थे| हम सब भाई-बहन यह देखते हुए बडे हुए तो थोडी-बहुत किसानी हमें भी आ गई ! पिछले बरसातमें आनेवाले आपातकालके लिए उपयोगी कुछ जडी-बूटी, फल-फूल एवं अन्य वृक्ष हमने लगाए हैं; किन्तु हमें कभी भी उसमें रासायनिक खादका उपयोग नहीं किया ! अब जब गैया आ गई है तो हमें जीवामृत इन्टरनेटसे देखकर बनाया और उसका उपयोग करनेपर हमें बहुत अच्छे परिणाम देखनेको मिल रहे हैं ! हमारे सारे फूल और पौधेकी रंगत ही परिवर्तित हो गयी है ! सबसे आनंद मुझे कल हुआ जब मैंने गुडहल देखे ! कुछ दिवस पूर्व मैंने देखा कि लालके अतिरिक्त जो अन्य रंगके गुडहल थे उनमें कीडे लग रहे थे, मैंने सोचा आश्रममें सब व्यवस्थित हो जाए तो इसके लिए भी नीमके पानीका छिडकाव करवाउंगी; किन्तु कल जब मैं गुडहल देखने गई तो ज्ञात हुआ कि वे सब हरे भरे हो गए हैं और सबके कीडे भी नष्ट हो चुके हैं | यह जीवामृतका चमत्कार है और उसमें विद्यमान गोमूत्रके कारण ही हुआ है ! अभी तो मात्र एक ही बार दिया है इसे और इसके परिणाम बहुत अच्छे हैं ! इस प्रकार यह आश्रम प्रतिदिन हमें कुछ नूतन सीखनेका माध्यम बन चुका है !


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