धर्मशिक्षणके अभावके कारण, आज अनेक जन्मब्राह्मण जिनके उपनयन संस्कार हो चुके होते हैं, वे कुछ काल उपरान्त अपने यज्ञोपवीतका परित्याग कर देते हैं, विशेषकर उत्तर भारतके नगरों एवं महानगरोंमें रहनेवाले युवावर्गमें यह अत्यन्त सामान्य तथ्य है; अतः जन्मब्राह्मण पालकोंको चाहिए कि वे अपनी सन्तानोंमें धर्माचरणको पालन करनेके संस्कारोंका बीजारोपण करें एवं मात्र उपनयन संस्कार करवाना चाहिए; इसीलिए इसे एक रूढि समान न करवाएं, अपितु उपनयनधारी सन्तानें आजीवन यज्ञोपवीत धारणकर, उसका सम्मान करें एवं उपनयन निमित्त आचारधर्मका पालन करें, यह उन्हें सिखाएं ! पूर्वकालमें तीनों वर्णोंके पुरुष (ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य) उपनयनधारी होते थे; किन्तु कालान्तरमें धर्मशिक्षणके अभावमें यह मात्र ब्राह्मणोंके एक संस्कार कर्म तक सीमित रह गया एवं अब तो यह जन्मब्राह्मणोंकी युवा पीढीमें भी लुप्तप्रायसा होने लगा है । हिन्दू-पुरुषो, यज्ञोपवीत धारण करनेके अनेक आध्यात्मिक लाभ हैं; इसीलिए उस यज्ञसूत्रका महत्त्व जान, उसे धारण करें एवं उसे मात्र सामान्य सूत्र समझकर उससे सम्बन्धित धर्माचरणको भार न समझें !
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