उत्तम सन्तति हेतु गर्भाधान संस्कारका महत्त्व (भाग-१)


समाजमें धर्मप्रसारके मध्य मैंने पाया है कि आज गृहस्थोंको पुनः सोलह संस्कारोंका महत्त्व बताया जाना चाहिए तभी उत्तम सन्ततिकी प्राप्ति सम्भव है । इसलिए यह लेखमाला आरम्भ कर रही हूं, कृपया इसका प्रसार अधिकसे अधिक लोगोंमें करें यह नम्र विनती है ।
सर्वप्रथम गर्भाधान संस्कारका महत्त्व समझ लें !
गर्भाधान संस्कारके सम्बन्धमें स्मृतिसंग्रहमें लिखा है –
निषेकाद् बैजिकं चैनो गार्भिकं चापमृज्यते ।
क्षेत्रसंस्कारसिद्धिश्च गर्भाधानफलं स्मृतम् ॥
अर्थात : विधिपूर्वक संस्कारसे युक्त गर्भाधानसे अच्छी और सुयोग्य सन्तान उत्पन्न होती है । इस संस्कारसे वीर्य सम्बन्धी पापका नाश होता है, दोषका मार्जन तथा क्षेत्रका संस्कार होता है । यही गर्भाधान-संस्कारका फल है।
यहां क्षेत्रके संस्कारका अर्थ है : वास्तुमें रहनेवाली अनिष्ट शक्तियां, जिनका उल्लेख मैं कलके लेखमें कर ही चुकी हूं ।
आज धर्माचारणके अभावके अधिकांश दम्पतियोंको सोलह संस्कारोंका महत्त्व ज्ञात नहीं है; इसलिए वे इनका पालन भी या तो करते नहीं हैं या उसे ठीकसे आचरणमें नहीं लाते हैं; परिणामस्वरूप उनकी सन्तानोंको गर्भकालसे ही कष्ट होने लगता है । आजकल अनेक नवजात शिशुओंको जन्मके समयसे ही कष्ट होने लगता है और यदि ऐसा होता है तो समझ लें कि बच्चेपर गर्भकालमें ही अनिष्ट शक्तियोंका आक्रमण हो चुका है । इस तथ्यको समझने हेतु मैं आपको कुछ उदाहरण देती हूं, जैसे सात माहमें शिशुका जन्म होना, जन्मके पश्चात उसे कोई रोग हो जाना एवं स्थिति गम्भीर होनेपर उसके जीवन रक्षण हेतु गहन चिकित्सा कक्षमें (इन्क्यूबेटरमें) रखने हेतु चिकित्सकका बाध्य होना । शिशुका दूध न पीना, रात्रिमें या अन्य समय अत्यधिक रोना अथवा उसे उदर या सांस सम्बन्धी रोग हो जाना, यह सब दर्शाता है कि शिशुको गर्भकालमें ही अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट हो चुका है ।
दुःखकी बात यह है कि ऐसे बच्चोंको जन्मसे ही अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होनेके कारण उन्हें आजीवन तबतक कष्ट होता है, जबतक वे आध्यात्मिक प्रगतिकर, सन्तके पदपर आसीन नहीं हो जाते हैं । अर्थात माता-पिता धर्मपालन व साधना न कर अपने बच्चोंको आजीवन आध्यात्मिक कष्ट उपहारके रूपमें दे देते हैं ।
इसी सम्बन्धमें उपासनाके दो साधकोंकी अनुभतियां आपके समक्ष साझा कर रही हूं, जिससे आपको साधनाका महत्त्व समझमें आए !
अनुभतियां
१. अजन्मे बच्चेपर पूज्या मांद्वारा किया गया उपाय (मई-जून २०१२ में)
मेरे दो भाई हैं और दोनोंका विवाह एक ही वर्ष ६ माहके अन्तरालपर हुआ । मेरे बडे भाईको कोई सन्तान नहीं है । जब पांच वर्ष पश्चात मेरी छोटी भाभी गर्भवती हुईं तो मेरे मां-पिताजीको एक आशाकी किरण लगी; किन्तु शीघ्र ही कुछ ऐसा हुआ (वैद्यकी चूकके कारण) कि स्थिति गर्भपात करवानेकी आ गई । वैद्योंका कहना था कि यदि गर्भपात नहीं करवाया गया तो बच्चेके बचनेकी सम्भावना बहुत कम है और यदि बच भी गया तो अपंग होगा ।
मायकेमें जो भी थोडी आशाकी किरण दिखाई दी थी, पुनः सब हताश हो गए । २-३ वैद्योंसे सुझाव लिया गया, सभीका एक ही मत था । मां-पिताजीको छोडकर (दोनों निष्पक्ष थे) परिवारमें सभी बडोंने मेरे भाई-भाभीको गर्भपात करवानेका ही सुझाव दिया; किन्तु मेरी भाभीने गर्भपात करवानेसे मना कर दिया । पूरे गर्भकालमें बच्चेके आनेकी प्रसन्नता कम और क्या-क्या अनिष्ट हो सकता है ?, यही सभीके मस्तिष्कमें चलता रहता था ।
मैं कुछ वर्षोंसे फेसबुकके द्वारा पूज्या तनुजा मांके सम्पर्कमें थी । मनमें हां, न करते-करते मां-पिताजीके कष्टको देखते हुए मैंने पूज्या मांको ये सब बताने हेतु ‘ईमेल’ किया । उन्होंने तुरन्त मुझे उपाय बताते हुए उत्तर दिया कि अनिष्ट शक्तिका कष्ट है; अतः मेरी भाभीको क्या-क्या करना चाहिए और साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जब भाभी प्रसव हेतु जाएं तो मैं उन्हें तुरन्त सूचित करूं, वो प्रारब्धमें तो कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं; किन्तु जो उनके हाथमें होगा, वो अवश्य करेंगी ।
मैंने मांसे बात की; क्योंकि भाभी उस समय बहुत अशान्त रह रही थीं, मेरी मांने वहांकी स्थिति देखते हुए कहा कि भाभी कुछ भी नहीं करेंगी, मैंने पूज्या मांको बताया तो उन्होंने पूछा कि उनके स्थानपर जप क्या मैं कर सकती हूं और वो भी अखण्ड ? मेरी बेटी भी उस समय बहुत छोटी थी, मुझे घबराहट हुई कि मैं ऐसे ही अकेले बहुत कष्टसे उसे पाल रही थी, घरका सारा कार्य, साथमें अखण्ड जप कैसे कर पाऊंगी ? पूज्या मांने उसका भी समाधान बताया कि कैसे आरम्भ करूं और कैसे अखण्ड करनेका प्रयास करूं ?
सामने न होते हुए भी लगा जैसे उन्होंने मेरे समीप आकर मुझसे सब करवाकर लिया । मेरा जप कितनी शीघ्र अखण्ड जपमें परिवर्तित हो गया, मुझे स्वयं विश्वास नहीं हुआ । मैंने ८वें महीनेमें पूज्या मांसे सम्पर्क किया था तो मात्र एक महीने मैंने जप किया और प्रसवके समय पूज्या मांको दूरभाषकर कॉल बताया । उन्होंने मात्र ‘ठीक है’, ऐसे बोलकर दूरभाष रख दिया । एक घण्टेके अन्दर ‘किरायेदार’ने मुझे दूरभाषपर सूचित किया कि लडका हुआ है ।
पूज्या मांने कुछ दिवस पश्चात मुझे ‘ईमेल’ करके बताया कि गर्भपर हमारे घरके अतृप्त पितर जो ब्रह्मराक्षस योनिमें थे, उनका गर्भस्थ शिशुपर आक्रमण हुआ था । यदि गर्भपात नहीं हुआ होता तो जन्मके साथ ही कुछ अनिष्ट हो सकता था ।
पूज्या मांकी कृपासे वह बच्चा स्वस्थ है, इस हेतु हम उनके प्रति हृदयसे कृतज्ञ हैं एवं उनके श्रीचरणोंमें कोटि-कोटि नमन करते हैं ।
– प्रज्ञा ठाकुर (१४.०१.२०२१)
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२. मेरा नाम प्रांजल कर्वे है । मैं उपासनासे पिछले कुछ माहसे जुडी हूं और पूज्या तनुजा मांके बताए अनुसार जब मैंने साधना की तो मुझे जो अनुभूति हुई, वह आपसे साझा कर रही हूं । जब मैं गर्भावस्थामें थी तब ९ वें माहतक सब ठीक था और सामान्य प्रसूति होगी, ऐसा वैद्य कह रहे थे; किन्तु अचानक गर्भस्थ शिशुकी हलचल पेटमें कम होने लगी और मुझे ‘सीजेरियन’ (शल्यक्रिया) करवाना पडा । शिशु रातभर बहुत रोता था और एक महीनेमें एक पूरी रात मुझे जगाता था । हमने बहुत उपाय किए, जैसे अच्छे बालरोग विशेषज्ञको दिखाया, एक कोई बाबा हैं उनके पास लेकर गए; किन्तु कुछ भी प्रभाव नहीं पडा, वह वैसे ही रातभर रोता रहता था ।
जब एक दिन नवंबर २०२० में पूज्या मां नासिकमें मेरे माता-पिताके घर प्रवचन हेतु आईं, तब उन्होंने हमारे बालकको देखकर कहा कि इसे तो बहुत आध्यात्मिक कष्ट है, इसकी प्राणशक्ति बहुत कम हैं ये रात को ठीकसे सोता नहीं होगा, तब हमने कहा, “हां ! सोता भी नहीं हैं और कुछ ठीकसे खाता भी नहीं है, तब पूज्या मांने मुझे एक उपाय बताते हुए शिशुके सोनेपर उसके सिरपर हाथ रखकर १५ मिनट दत्तात्रेय देवताका जप करने कहा ।
इस उपायको करनेके पश्चात उसी रात्रिसे हमारा बालक बहुत शान्तिसे सोने लगा । अब वह रातको न ही रोता है और न ही बार-बार उठता है । हमने एक दिन सोचा कि उपाय नहीं करते हैं देखते हैं क्या होता है ? तो उस रात पुनः वह पहले समान रोने लगा और हर २ घण्टेमें उठा । हमें हमारी चूक समझमें आई, अब हम पुनः नामजप करते हैं ।
पूज्या मां आपकी इस कृपाके लिए हम दोनों पति-पत्नी आपके अति कृतज्ञ हैं ।
आप ही हमसे आगे अच्छेसे साधना करवाकर ले लें, ऐसी आपके श्रीचरणोंमें प्रार्थना है ! – प्रांजल कर्वे (१४.०१.२०२१)



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