आजके राजनेताको जब किसी राजनितिक दलसे किसी कारणवश निष्कासित किया जाता है, तो उस दलके भीतर होनेवाले कुकर्मोंको वे उजागर करते है, इससे पूर्व उन्हें दलके नीतिशुन्यता एवं भ्रष्टाचारसे कोई आपत्ति नहीं होती है; किन्तु जैसे ही उनकी स्वार्थसिद्धिपर किसी कारणवश अंकुश लगाया जाता है, आरोप-प्रत्यारोपका क्रम आरम्भ हो जाता है और इस निष्कासित राजनेताको अन्य कोई भी ‘तथाकथित आदर्शवादी’ राजनितिक दल स्वयंमें बिना कुछ सोचे-समझे समाविष्ट करने हेतु आतुर रहते हैं । लोकतन्त्रने भारतमें जो घृणित रूप धारण कर लिया है, उसे देखकर यही लगता है कि इस स्थितिसे बाहर निकलनेका अब एक ही पर्याय बचा है और वह सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन हेतु धर्मक्रान्ति ! (१२.५.२०१७)
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