लोगोंमें धर्म और नैतिकताकी सीख देनेके स्थानपर सतही स्तरके उपाय करनेवाले आजके निधर्मी राज्यकर्ता
देशमें पहली बार किसी शासनने वृद्धोंको वृद्धावस्थामें उपेक्षाके पात्र बननेसे बचानेके लिए विधान(कानून) बनाया है । असमकी सर्वानंद सोनोवाल शासनने एक निर्णय लेते हुए ये विधान बनाया है, जिसके अन्तर्गत यदि कोई शासकीय कर्मचारी वृद्ध माता-पिताका उत्तरदायित्व उठानेसे बचता है तो उसके वेतनसे १० प्रतिशत पैसे काटे लिए जाएंगे ।
यदि हमारे देशकी राजनीतिक व्यवस्था धर्म अधिष्ठित होती तो वे यहांकी प्रजाको धर्मपालनका महत्त्व सिखाते जिससे प्रजाके धर्माचरणी होनेपर वे निम्नलिखित शास्त्रवचनका सम्मान कर अपने वयोवृद्धोंकी सेवा मन:पूर्वक करते !
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं ।।
अर्थात : वयोवृद्धका अभिवादन करनेवाले मनुष्यकी और नित्य वृद्धोंकी सेवा करनेवाले मनुष्यकी आयु, विद्या, यश और बल, ये चारों वृद्धिंगत होते हैं ।
क्या दस प्रतिशत वेतनकी काटे जानेके भयसे निधर्मी पुत्र और पुत्रवधुओंमें माता-पिताके प्रति प्रेम, श्रद्धा, सेवाभाव निर्माण हो सकता है ? और जो शेष वर्ग शासकीय सेवा नहीं करते हैं उनके उपेक्षाके शिकार हुए वृद्धों हेतु शासन क्या करेगी ?
‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ जैसे व्यवस्थामें समस्याओंके ऐसे ही एकांगी, सतही एवं हास्यास्पद उपाययोजना निकाली जाती हैं; अतः धर्म अधिष्ठित राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था हेतु हिन्दू राष्ट्रकी स्थापाना करना अनिवार्य हो गया है | – तनुजा ठाकुर (१८.९.२०१७)
Leave a Reply