तथाकथित हिन्दुओंका धर्मप्रेम !!
आजका हिन्दू प्रभु श्रीरामके समान उनेक गुणोंको आत्मसात् करनेका प्रयास तो नहीं करता; किन्तु उनके चित्रको वस्त्र रूपमें पहन कर उनकी विडम्बना अवश्य करता है । देवी-देवता, अवतार, सन्त, गुरु इनके चित्रसे चैतन्ययुक्त स्पन्दन निकलते हैं, इसलिए हम उनके स्वरूपकी पूजा करते हैं; परन्तु धर्मशिक्षणके अभावमें हम उन देवताओंके चित्रके वस्त्र पहनते हैं । वस्त्र पहननेके उपरान्त उन वस्त्रोंको अन्य मलिन (गन्दे) वस्त्रोंके साथ धोते हैं, पुराने हो जानेपर यत्र-तत्र फेंक देते हैं । अर्थात एक ओर देवताके स्वरूपकी पूजा और दूसरी ओर उनके स्वरूपकी अवमानना और ऐसा करनेके उपरान्त हिन्दू यह अपेक्षा रखता है कि उसपर देवी या देवताकी कृपा हो ! वाह रे, हिन्दुओंका धर्मप्रेम !! -तनुजा ठाकुर
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