पूर्व कालकी भारतकी कलाकृतियां या रचनाएं अधिकतर तामसिक नहीं होती थी; किन्तु वर्तमान कालमें अधिकांश कलाकारोंकी कलाकृतियां या रचनाएं तामसिक होती हैं । उसका मूल कारण है, उनकी वृत्तिका तामसिक होना ! ऐसे कलाकार चाहे उच्च शिक्षित हों; किन्तु वे धर्म और साधनासे बहुत दूर होते हैं; इसलिए उनकी वृत्ति तामसिक ही नहीं वरन अनिष्ट शक्तियोंसे आवेशित होती है ! वे नास्तिक होते तो कोई बात नहीं थी; किन्तु वे हिन्दूद्रोही होते हैं ! और वर्तमान कालमें तो हिन्दूद्रोह और राष्ट्रद्रोहका सीधा सम्बन्ध है, यह ध्यान रखें ! किसीकी कलाकृति या रचना सात्त्विक, राजसिक या तामसिक है यह वही जान सकते हैं; जो धर्मका मर्मज्ञ हो या जो साधना कर रहा हो या जिसकी सूक्ष्म इन्द्रियां इस जन्म या पूर्व जन्मोंकी साधनाके कारण जागृत हों । धर्म शिक्षणके अभावमें आज अधिकांश हिन्दुओंकी सूक्ष्म इन्द्रियां जागृत नहीं है तभी तो सर्वत्र तमोगुणका बोलबाला है ! हिन्दू राष्ट्रमें जब लोग साधनारत हो जाएंगे तो ऐसे कलाकृतियोंको एवं रचनाओंको वे स्वयं नष्ट कर देंगे; क्योंकि उससे प्रचंड प्रमाणमें नकारात्मक ऊर्जाका प्रक्षेपण होता है और यह कोई विशेष वर्ग या राजनीतिक पक्ष या व्यक्ति नहीं करेगा, स्वयं समाज करेगा ! इसलिए सभी समस्याओंका एक ही समाधान है – हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना, हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना, हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना !
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