बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें अभियान्त्रिकीके छात्रोंको पढाया जाएगा वैदिक विज्ञान, वेदोंमें बताई गई पद्धतियोंके आधारपर ऋतुका पूर्वानुमान लगाना भी सिखाया जाएगा


११ जनवरी, २०२१
     पूरा विश्व मानता है कि भारतके चारों वेद प्राचीन विज्ञानपर आधारित हैं और वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे लिखे गए हैं । ‘सर्वविद्याकी राजधानी’ कहा जानेवाला बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय अब इसे सार्थक करने जा रहा है; क्योंकि यहां अभियान्त्रिकीके छात्रोंको भी वैदिक विज्ञानसे अवगत कराया जाएगा । नूतन सत्रमें इसके लिए पाठ्यक्रमकी सिद्धता भी कर ली गई है । इसके लिए सहायक प्राध्यापकके पदोंपर नियुक्ति भी की जानी है ।
    वैदिक विज्ञान केन्द्रके समन्वयक प्रो. उपेंद्र त्रिपाठीने जानकारी दी है कि आवेदन करनेवाले अभ्यर्थियोंके लिए ‘इंजीनियरिंग’से अनुसन्धानके साथ ही १२ वींतक संस्कृतकी शिक्षाको अनिवार्य किया गया है । ‘मौसम’ विज्ञान केन्द्रमें ऋतुओंसे जुडी गणनाएं भी वेदोंके आधारपर की जाएगी । भारतके ऋषि-मुनि प्राचीन कालमें सनातन धर्ममें ज्योतिष, अंकशास्त्रके साथ वेदोंके आधारपर गणना करनेमें सफल रहते थे । उनकी गणनाएं और आकलन एकदम सटीक होते थे ।
     वैदिक ‘इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग स्टडीज’ नामक पाठ्यक्रमकी बात करें तो ये विश्वमें प्रथम बार होगा, जब ‘टेक्नोक्रेट’ वेदोंमें बताए गए प्रौद्योगिकी ज्ञानपर अध्यापन और शोधकार्य करेंगे । इसके अन्तर्गत वैदिक प्रौद्योगिकीके प्रयोगशालामें उपयोगमें आनेवाले यन्त्रों व उपकरणोंका संचालन व निर्माण भी किया जाएगा । जल शोधन तकनीक, धातु विज्ञान, सूर्य विज्ञान, विमान विद्या और नौका शास्त्र सहित कई पद्धतियोंपर शोध कार्य होगा ।
     समाचारके अनुसार, इस केन्द्रके अभ्यर्थियोंके लिए संस्कृतका ज्ञान अनिवार्य रखा गया है; क्योंकि वेद इसी भाषामें हैं । ‘बीटेक’ और ‘एमटेक’के लिए जो योग्यता मांगी गई है, वो तकनीकी पाठ्यक्रमकी ही है ।
     भारतमें तो सदैवसे प्रकृतिकी पूजा होती आई है । यहां वैदिक कालसे ही यह चला आ रहा है । विश्वके सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेदका आरम्भ ही अग्निकी स्तुतिके साथ होता है । विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि गणित एक ऐसा माध्यम है, जिसकेद्वारा एक नास्तिक भी ईश्वरकी पूजा कर सकता है । इसी विषयमें भारत अन्य सभ्यताओंसे आगे रहा है । ऋषि-मुनियोंने प्राचीन कालमें गणित और प्रकृतिके सम्बन्धोंको समझा है और ईश्वरतक पहुंचनेका माध्यम बनाया है ।

      आधुनिक विज्ञानने विलम्बसे ही सही यह माना तो कि वेदोंका विज्ञान सबसे प्राचीन विज्ञान है । प्राचीन सभ्यतामें यह भारतमें व समस्त विश्वमें अत्यन्त विकसित था, जिसे म्लेच्छ और अंग्रेज आक्रान्ताओंने यहांके विश्वविद्यालयोंको नष्टकर, नष्टप्राय कर दिया व यहां रखे अनेक प्राचीन ग्रन्थोंको जला दिया । योगी शासनका यह अच्छा प्रयास है, जो प्राचीन वेद विज्ञानको पुनर्जिवित कर रहा है । अन्य भी इससे सीख लें और भारतकी शिक्षा पद्धतिसे ‘मैकॉले विकर्षण पद्धति’ रूपी कलंकको मिटाएं ‌! – सम्पादक, वैदिक उपाासना पीठ

स्रोत : ऑप इंडिया



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