विद्यार्जन एक यज्ञ कर्म है यह ध्यान रहे


शौचालयमें बैठकर पत्रिका पढनेवाले यह नहीं जानते कि वे ऐसे अनुचित कृत्य कर अपना बहुमूल्य समय नहीं बचा रहे हैं अपितु मां सरस्वतीकी अवकृपा अर्जित कर रहे हैं | धर्मप्रसारकी सेवाके मध्यमें अनेक संभ्रांत परिवारके घर रहना हुआ | उनके घर जानेपर वहां एक पैशाचिक प्रचलन देखनेको मिला | शौचालयमें वे पत्रिका और पुस्तक रखते हैं और शौचके समय उसे पढते हैं | ध्यान रहे, विद्यार्जन एक यज्ञ कर्म है और विद्या प्राप्तिका माध्यम पुस्तक है, ज्ञान चाहे व्यवहारकी हो या अध्यात्मकी, बिना सरस्वतीके कृपाके संभव नहीं | ऐसेमें पुस्तक और विद्या अर्जन दोनोंकी अवहेलना कर ईश्वरीय कृपाके पात्र कोई कैसे बन सकता है स्वयं सोचें ! और ऐसे अनुचित कृत्य न करें | – तनुजा ठाकुर

 



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